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________________ 9595959595151 विधानुशासन P55 जलधारा प्रदातव्या मंत्रयित्वा जलं पुरा, मंत्रणानेन सर्वेषां ज्वाला गर्दभ संज्ञिनां ॥ ७५ ॥ इस मंत्र से जल को अभिमंत्रित करके सभी ज्याला गर्दभो को जल धारा देनी चाहिये । ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय कमठ दर्प विध्वंसनाय धरणेंद्र फणा मणि ज्वाला प्रभावनाय अस्य गर्दभस्य शिरः छिंद छिंद गतिं छिंद छिंद मतिं छिंद छिंद हस्तौ छिंद छिंद दिश: छिंद छिंद विदिशः छिंद छिंद संकीर्तनाय स्वाहा ॥ मूल मंत्र: विधाय गंध पुष्पा मंत्रणानेन पूजनं, खटिकोत्कीर्ण रूपस्य पश्चात् छेदनमारभेत एक ॥ ७६ ॥ इस मंत्र के द्वारा गंध पुष्प आदि से पूजन करके फिर खड़िया से उसका रुप बनाकर उसका छेदन का कार्य प्रारंभ करे । ॐ नमो भगवते जिन पार्श्व रुद्राय गंध पुष्प दीपं धूपं गृन्ह गृह मुंच मुंच मानुषं स्वाहा ॥ अथवा तेन मंत्रेण गर्दभस्या शिरः पुनः मंत्रमुच्चाटय ऐदये द्विधि नासदा || 199 || अथवा मंत्री उस मंत्र से इस मंत्र को बोलकर गर्दभ के सिर को फिर मंत्र बोलकर विधि के द्वारा हमेशा छेदे । ॐ नमो भगवते जिन पार्श्वनाथाय रुद्राय जित हरि हर हर पितामह प्रभावेण हंता लंका रामेण रावणस्य शिरो यथा छिन्नं तथा गर्दभस्य शिरषु छिंद छिंद ठः ठः गर्दभ शिर छेदन मंत्र: सप्त वारान् जलं जप्तत्वा देयं घोणस विधया, प्रत्यहं रोगिणां पांतु मंत्रिणा शुद्ध चेतसा || 192 || घोणस मंत्र के द्वारा जल को सात बार अभिमंत्रित करके प्रतिदिन शुद्ध चित्त से रोगी को पीने के लिये देये । CSPPA 05 04. PSP59 こちらこ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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