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CASTOTRICISTORICISIS विधानुशासन VSTOROTECTRICISE
चंद्राहासस्य दातव्यमौषधं हदि दारिणः, कूष्मांड बीजमापेमछाग क्षीरेण लंपात्
॥७०॥
तत्क्षणात् प्रसरस्तस्य दाह शोषश्च नश्यति, लिरिवत्वा गर्दभ तस्य यायव्यां छेदयेत् शिरः
॥ ७१॥
इति वापाठ
ॐ नमो जिन रुद्राय हन हन छिंद छिंद चंद्रहास रखगेन स्वाहा।। हृदय में निकलने वाले चंद्रहास के लिये कूष्मांड (कोल्ह) के बीजों को बकरी के दूध मे पीसकर लेप करने के वास्ते देवें। इससे उसका निकलना जलन और सूजन उसी समय नष्ट हो जाती है। वायव्य (पश्चिमोत्तर) कोण की तरफ मुख्य किये हुए गधे की आकृति को भूमि पर यड़िया से लिखकर उसके सिर को मंत्र पढ़ता हुआ छेद डाले।
दुद्धरस्टास्ट जातस्य दातव्यं तंत्रमुत्तम, मातुलिंगस्य बीजानि प्रियंगु रजनी द्वयं
॥७२॥
मंजिष्टा कुंकुमो शीरं कौ_भं केशरं तथा, पिटवा क्षतां भसालेपेनोपशाम्यति दुर्द्धरः
॥७३॥
मंत्रेणानेन छिया लिरियत्वाधो मुरवं रखरं, जप्तत्या त्रिसप्त वारांश्च दद्यान्मधुर भोजन
॥७४॥
ॐनमो भगवते रुद्राय दिलिंद चंद्रहास स्वइगेन ये ये समन्विताय हुं फट ठः ठः
ठः ठः ॥ मुख में दुर्धर के निकलने पर उत्तम तंत्र देये (मातुलिंग)। विजोरा के बीज फूल, प्रियंगु, दोनों हल्दी (हल्दी और दारु हल्दी) मंजीठ, कुंकुम, उशीर (खस) कुसुभा केशर, तथा चावलों को (अभंसा) जल में पीसकर लेप करने से दुर्घर उसी क्षण शांत हो जाता है। नीचे को मुख किये हुए खर को लिखकर छेदे और इस मंत्र को २१ बार जप करके पीछे मधुर भोजन देवे ।
ॐनमो भगवते रुद्राय छिंद छिंदचंद्रहास वनर्यये समन्विताय हुं फट ठः ठः॥
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