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________________ 95590595151 विधानुशासन DPSPS धूप लेपन पानेन कुर्य्यात् तद् दाह वारणां, मंत्रेणानेन तं विद्याद्दक्षिणाभिमुखं वरं ॥ ६५ ॥ ॐ नमो भगवते जिन रुद्रया जिन वसुदेवाय शंख चक्र मुद्गर हस्ताय वन माला घर देहाय सुदर्शन चक्रेण छिंद छिंद नमः स्वाहा || आदि स्थानों में निकलने वाले कलह प्रिया का गूलर में उत्पन्न हुए अंकुर और चंदन की धूप देने लेप करने और पिलाने से कष्ट कूर करे और इस मंत्र से दक्षिण की तरफ मुँह वाले खर का सिर छेद डाले। गुह्यस्थ कुंभकर्ण स्टो मंत्रं तस्य नियोजयेत्, लवग तगरं कुष्ट पिष्ट्वा गोमूत्रतस्ततः पान लेपन दानेन सुखं भवति तत्क्षणात्, खटिका छेदनं कुर्य्यात् याम्यानि च गर्दभं देयं विभीषणस्येदं मंत्र तंत्र समुद्भवं, हरामूत्रेण संघिष्टं मृग विष्टा प्रलेपनं ॥ ६६ ॥ ॐ नमो भगवते जिनेन्द्राय छिंद छिंद चंद्रहास खड्गेन स्वाहा ॥ गुप्त स्थान में होने वाले कुंभकर्ण पर मंत्र का प्रयोग करे, तथा लौंग तगर और को गौमूत्र कूठ में पीसकर पिलाने और लेपन से करने उसी समय शांति हो जाती है मंत्र से दक्षिण की तरफ मुख वाले खड़िया से लिखे हुए गर्दभ का छेदन करे । लिखित्वा गर्दभं पश्चात् पूर्वाभिमुख संस्थितं, कुर्यान्मंत्रेण शीर्षस्य छेदनं तस्य मंत्रवित् ।। ६७ ।। ॥ ६८ ॥ ॥ ६९ ॥ ॐ नमो जिनरुद्राय महाकालाय कडु कडु छिंद छिंद चंद्रहास खड्गेन स्वाहा ॥ अंडकोष के विभीषण के लिये मंत्र और तंत्र से उत्पन्न हुए हिरण की विष्टा को घोड़े के मूत्र में पीसकर लेप के वास्ते देवे। फिर मंत्र को जानने वाला पूर्व की तरफ मुख वाले गर्दभ को लिखकर मंत्र से उसका सिर छेदन करे । 9595950 9595 ७४८ PSP5959‍695905
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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