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PSPSPAPSPSS विधानुशासन 151
तीव्र
'दुख देने वाले गौर के पीट में निकलने पर उसकी मंत्र और तंत्रों से कोई भी चिकित्सा नहीं हो सकती है।
सर्वांग संधि जातस्य मृत्यु कालस्य भेषजं, न किंचिद्विद्यते योग्यं नास्ति मंत्रस्य कश्चन :
।। ५९ ।।
अंग के सब जोड़ों में उत्पन्न होने वाले मृत्युकाल की न तो कोई औषधि ही है और न कोई मंत्र है ।
पिंगल स्पौषधं देयं शीर्ष देशा व लंविनः, अर्क मूलं प्रियंगुश्च नाग केशर कुंकुमः
पिष्टवा तंदुल तोयेन पाने लेपे प्रयोजयेत्, छिंद्याद्रर्दभमालिख्य मंत्रेणोत्तर दिग्मुखं
॥ ६१ ॥
ॐ नमः पार्श्वनाथाय घर घर विध्वंशय विध्वंशय छिंद्र छिंद तीक्ष्ण हस्त स्थगेन् रेन् ॥
सिर में निकलने वाले पिंगल की औषधि न बिना विलम्ब के दें। आक की जड़ फूल प्रियंगु और नागकेशर और कुंकुंम (केशर) देनी चाहिये। इन औषधियों को चावलों के पानी के साथ पीसकर पिलावे । इन्हीं का लेप भी करे और मंत्र को पढ़ते हुए उत्तर की तरफ मुख वाले गर्दभ को लिखकर उसके सिर को छेद डाले ।
नेत्रस्थ विजय स्येदं देयं तंत्र प्रलेपनं, करवीर सन्मूलं पिष्ट्वा तंदुल तोयतः
॥ ६० ॥
कुर्यादनेन मंत्रेण पश्चिमाभि मुखं खरं, लिखित्वा शिरश्छेदं ततः खटिकया भुवि
॥ ६२ ॥
॥ ६३ ॥
ॐ नमो भगवते पार्श्व रुद्रया ज्वल ज्वल छिंद छिंद सुदर्शन ज्वाला माला सहस्ताया ॥
नेत्र में होने वाले विजय के ऊपर निम्नलिखित तंत्र का लेपन करे। कनीर की जड़ को चावलों के पानी में पीसकर लेप भी करे। इस मंत्र से पश्चिम की तरफ मुख वाले गधे की आकृति खड़िया से बनाकर उसके सिर को छेदे ।
जंयादि स्थान जातस्य कलह प्रिय संज्ञिनः, उदंबर समुद्भूत प्ररोहश्चंदनं तथा
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।। ६४ ।।