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________________ 252525252595 Dungqueta YSUSESYSES95. कपिलो जायते कुक्षौ पृष्टे गौरति तीव्रकः, मृत्यु कालो भवेत्संधौ शीर्ष पिंगल संज्ञिकः विजयो जायते नेत्रे जंधादौ कलह प्रियाः, कुंभकर्णी भवदुह्ये वृषणे च विभीषणः पीत मंडल सादृश्या सशोष दाह विधायिनः, वर्धते प्रत्यहं ते च मुख तेषानं दृश्यते ह्रदये चंद्रहासः स्यादपुर्द्धरो बदने भवेत्, उत्पत्तिस्थानकं प्रोक्तं ज्वाला गर्दभ संज्ञिनां ॥ ५४ ॥ कपिल कोख में और अत्यन्त तीव्र, गौर पीठ में मृत्यु, काल जोड़ में और सिर में पिंगल होता है। विजय आंख में, कलह प्रिया जंघा आदि में कुम्भकर्ण गुप्त अंग में और विभीषण अंडकोष में होता है। चंद्रहास ह्रदय में और दुर्धर मुख में होता है यह ज्वाला गर्दभ रोग के निकलने के स्थान कहे गये हैं । रांड चर्म्म रक्तेन कुर्यात् कर्पूर संयुजा, छिंद्यादगर्दभमालेख्य मंत्रेणानेन भूतले ॥ ५२ ॥ ॥ ५३ ॥ पृष्ठे जातस्य गौरस्य तीव्र दुख विधायिनः, नास्ति तस्य प्रतिकारी मंत्र तंत्र समुद्भवः ॥ ५५ ॥ ॐ नमो भगवते पार्श्व चंद्राय छिंद छिंद चंद्रहास खडगेन जिन वचनमनुस्मरामि || पूर्वाभिमुख मालिख्या खरं खटिकया, पुनः कृते तस्य शिरच्छेदे ज्वाला गर्दभनाशनं 9596959 ॥५६॥ ॥ ५७ ॥ वह पीले मंडल के समान गोल और शोष (सूजन) और जलन करने वाले प्रतिदिन बढ़ते रहते हैं । उनका मुख भी दिखलाई नहीं देता है। गधे के अंडकोष चमड़े और रक्त में कपूर मिलाकर निम्नलिखित मंत्र के द्वारा गर्दभ को देखकर पृथ्वी में लिखकर उसके सिर को छेदे । ॐ नमो भगवते पार्श्व चंद्राय छिंद छिंद चंद्रहास खड्गेन् जिन वचनमनुस्मरामि ।। गधे की आकृति खड़िया से पूर्व की तरफ मुह किया हुआ लिखकर उसके सिर को छेदने से ज्याला गर्दभ रोग नष्ट होता है। ॥ ५८ ॥ 59595 ७४६ PSP5969595955 ६ : ! 1
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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