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________________ C5250 統 विधानुशासन ぐらでたらめぐりで रं रं रं tttt ररं रं रं साध्या रख्या सुत पुंच्छं झौं संयुतं मूर्द्ध पंच कोपेतं, चत्वा रिशंत्पुट मय तनु महिमा लिख्य कोष्टेषु लिख वज्र श्रृंखलाया वर्णानवरोहेणेन पंच तथा, आरोहणेन यंत्रं ज्वर ग्रहादीन् जयेत् सर्व ॥ १७ ॥ 11 82 11 ॐ नमोरत्नत्रयाय वज्र श्रृंखलाय अग्रि प्रकार दर्शनाय तिष्ठ तिष्ठ बंटा बंध महा बंद्य महा बंध ठः ठः ॥ वज्र श्रंखला मंत्रोयं टांत वकार प्रणमन जांताऽर्द्ध शशि प्रवेष्टितं, नाम शीतोष्ण ज्वर हरणं स्यात्ष्ण हिमांबु निक्षिप्तं यह वज्र श्रंखला मंत्र है। सर्प की पूंछ में साध्य के नाम को लिखकर पांच घुमाव देकर सिर में झौं बीज लिखकर फिर उसके कोठों में चालीस पुछमय महिमा को लिखे। उनके कोठों में वज्र श्रंखला मंत्र को पांच पांच वर्णों की चढ़ाव च उतार के क्रम से यह मंत्र सब ज्वरों और यह आदि को जीतता है। (यंत्र१ यहाँ पर है) ॥ १९ ॥ टांत (ठ) वकार (व) प्रणमन (ॐ) जांता (झ) के बाहर आधे चन्द्रमा से वेष्टित करे। यह नाम सहित शीतल जल में रखने से उष्ण ज्वर को नष्ट करता है और गरम जल में रखने से शीत ज्वर नष्ट करता है। PSPSP59 959595/ ७३८P58959695959595 } · F " ● I
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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