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CASRASICISTORTOISODE विद्यानुशासन 1525105505CISION इस मंत्र कोएक लाख जप से सिद्ध करना चाहिये अष्टमी चर्तुदशी को शिवजी का आक के सफेद फूलों से पूजन करके खान करावे तो ज्वर नष्ट होगा।
ॐ नमो भगवते रुद्राय वंद्य वंद्य ज्वर हुं फट ठः ठः ॥
सहस्त्रबार जाप्पेन सिद्धं रौद्र मिदं रह: स्था, शिरवा वंद्यनेनाच ज्वर वंद्य विधायिकां
॥११॥ इस रौद्र मंत्र का एक हजार जप से सिद्ध करके घोटी बांध देने से ज्वर भी बंद हो जाता है।
हंसा वृताऽभिधानं मलवरट षष्ट स्वरान्वित कूट बिंदु युतं स्वर परिवृत मष्ट दलां भोज मध्य गतं
॥१२॥
तेजोऽहं सोम सुधा हंसः स्वाहेति दिग् दलेषु लिरवेत् , आग्रेयादि दलेष्यपि पिंडयत् कर्णिका लिस्थित
॥१३॥
भूजें सुरभि द्रव्यविलिस्ट तत् सिंचयेत् परिवेष्टा, नूतन टाटांबुपूणे तद् यंत्रं स्थापयेत् धीमान्
॥१४॥
तंदुल पूर्ण मन मय भाजनमप्यु परितव्य विन्यिसेत्, तत्पाश्वस्थ जिनाग्नस्थं करोति दाह ज्वरोपशम
॥१५॥
श्री खंडेन तदा लिख्य पायरोत् कांश्या भाजने,
महादाह ज्वर ग्रस्त तत्क्षणादुपशाम्यति ॥१६॥ देवदत्त नाम को हंस पद से वेष्टित करके, उसके बाहर म ल व र य ॐ कार सहित कूट (क्षकार) अक्षर को अनुस्वार सहित लिखे - अर्थात् नाम के बाहर हंस लिखकर उसको दम्ल्यूं लिखे उसके बाहर १६ स्यर लिखे। उसके बाहर आठ दल का कमल बनाये। तेज (ॐ) अर्ह सोम (इवीं) सुधा (क्ष्वी) हंसः स्वाहा इस मंत्र को पूर्व आदि चारों दिशाओं में लिखे, तथा अग्नि आदि विदिशाओं दम्ल्यूं पिंड को जिसे बीच की कर्णिका में लिखा है लिखे। भोजपत्र पर सुगन्धित द्रव्यों से इस यंत्र को लिखकर, मोमिया कपड़े से लपेट कर, उसको मिट्टी के नये घड़े में स्थापित करके, पानी से भर देवे। यंत्र को पानी से सींच देवे उसके ऊपर मिट्टी के बर्तन में चावल भरके रख देवे उसको पार्श्वनाथजी जिनेन्द्र देव के सामने रखने से दाह ज्वर को शांत करता है। अगर इस यंत्र को कांसी की थाली मे चंदन से लिखकर पिलावे तो बहुत ही तेज चढ़ा हुआ ज्वर उसी क्षण शांत हो जाता
है।
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