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________________ PSPSPSPSPSS विद्यानुशासन 9595959595‍ अथ वक्ष्यामि केषां चिदामयानां चिकित्सितं. सिद्धैर्मत्रैश्च यंत्रैश्च प्रयोगश्च यथा श्रुति ॥ १ ॥ अब शास्त्र के अनुसार सिद्ध मंत्र यंत्र और प्रयोगों से कुछ रोगों की चिकित्सा का वर्णन किया जायेगा । दरोगा द्विविधाः स्युः कृषिमा दोषाः, वातादि दोष विहिताः कृतका विद्वेषि जन जनिता: ॥ २ ॥ वह रोग दो प्रकार के होते हैं एकतो दोषज दूसरे कृत्रिम वात, पित्त, कफ के प्रकोप से होनेवाले रोगों को दोषज और द्वेष करने वाले पुरुषों से उत्पन्न हुए रोगों को कृत्रिम या बनावटी कहते हैं । दोषोत्थान प्रति संप्रति विधीयते प्रति विधिर्म्महावेगान्, कृत्रिम रोगाणां तु प्रवक्ष्यते प्रतिविधिः पश्चात् ॥ ३ ॥ अब प्रथम बड़े वेग वाले दोषज रोगों की चिकित्सा का वर्णन किया जाता है कृत्रिम, रोगों की चिकित्सा का वर्णन पीछे किया जाएगा। ॐ नमो भगवते रत्नत्रयाय ज्वर हृदटा मावर्त्तयिष्यामि भो भो ज्वरं शृणु श्रृणु हन हन भद्दे मद्द गर्ज गर्ज पर्दछदं मुंच मुंच सर्व ज्वर आपत आपत वज्र पाणि राज्ञापयति मम शिरो मुंच मुंच कंठं मुंच मुंच उरो मुंच मुंच ह्रदयं मुंच मुंच उदरं मुंच मुंच कटिं मुंच मुंच उरुं मुंच मुंच जंघे मुंच मुंच पादौ मुंच मुंच वज्रपाणिराज्ञापयति हुं फट ठः ठः ॥ , कृत्वा गुग्गुलना धूपं मंत्रमेतं शुचि जपेत् त्रिसप्त कृत्वा शाम्यति ज्वराः सर्वेऽपि तत्क्षणात् " ॥ ४ ॥ गूगल की धूप देकर इस मंत्र को पवित्र होकर इक्कीस बार जपे तो सर्व ज्वर उसी क्षण शांत हो जाता है । ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय उग्र चंडी महा चंडी छिंद छिंद भिंद भिंद स्तोभय स्तोभय उच्चाटय उच्चाटय आकर्षय आकर्षय धग धग दिव्य योगिनि ललाटं मुंच मुंच मुखं मुंच मुंच ग्रीवां मुंच मुंच बाहुं मुंच मुंच उपबाहुं मुंच मुंच ह्रदयं मुंच मुंच उदरं मुंच मुंच कटिं मुंच मुंच पृष्टिं मुंच मुंच जंघ मुंच मुंच जानु मुंच च पादौ नवं मुंच मुंच भूमिं गच्छ गच्छ महा ज्वरं हुं फट ॥ एड 59595 ७३५P/596959P5PSPSS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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