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________________ SHRISTMISSISASTE विधानुशासन 95015RIOTSID500 प्रतीप दर्शिनी दुग्गा हेम वंती यशस्विनी कीर्तिमती महामति श्च विश्वमति मतिवती ॥३२॥ ६९ प्रतीपदर्शनी - ७० दुर्गा हेमवती-७१ यशस्वनि -७२ कीर्तिमति महामति-७३विश्वभारती मतियती -७४ साधनी देवी- महती-७५महाभक्ति यती रख्याता वैमलि शिरयंडिनी च महानदी सिंधु धारिणी ख्याता ॥३३॥ विशेषा भाभ का सैनी भवानि सर्वशकुंला अपर्णाचंडिका पौलोमी अभया पथ्य का पुनः ॥ ३४॥ कायस्था-निर्जरा सुरा अमरा स्वर्गधारिनी रूद्राणी सर्याणी देवी तामसा स्त्री महामहा ॥३५॥ महापूज्या महामाता महादेवी महासुरा अमराधा महानागी महामायी महोत्तमा ||३६॥ ७६ साध्वी देवी-७७ महती-७८ महाभरा भक्ति वती-७९ वैमालि-८० शिखंडनी-८१महानदी-८२ सिंधुधारिणी-८३ विशेषा ८४ भामकासैनी-८५ भयानी-८६ सर्वशंकुला-८७ अर्पणा-८८-चंडिका -८९ पौलोमी- ९० अभया- ९१पथ्यका- ९रकायस्था निर्जरा सुरा ९३ अमरा स्वर्ग धारिणी- ९४ रूद्रानी-९५सर्याणी-९६तामसा अस्त्री-९७ महामहा-९८ महापूज्य ९९महामाता-१०० महादेवी -१०१-महासुरी अमराधा -१०२ महानाग -१०३महामायी- १०४महोत्तमा आयुधा नाम्ना ख्याता तामुहा इति ख्याति मृग मत्यानाम्ना परा सुविधा परविधा छेदिनी चपलवेगा ॥३७॥ १०५ आयुधा- १०९ परायुधा- ११०सुविधा-१११परविधा छेदिनी - ११२चपलयेगा १०६ तामहा इति नाम वाली १०७ मृग और १०८ मत्सा नाम वाली यह विद्यायें हैं। आसां प्रसादात्संप्राप्त खेचरत्यादि वैभवाः विद्याधरां विराजते माअपि सुराईव ॥३८॥ इन विद्याओं के प्रसाद से विद्याधर लोग आकाशगामी आदि ऐश्वर्य से मनुष्य होते हुवे भी देवों के समान शोभित होते हैं।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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