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SSIOHDDISCISIODO विद्यानुशासन 9501510351015015015
विद्याना प्रकाराणि मान साधनसाधयि: विद्यानुवादे सर्वासामाभ्य द्यायि गणेशिना
||३९॥ इन दोनों प्रकार की विद्याओं की साधन विधि को श्री गणधर भगवान ने विद्यानुवाद पूर्व में वर्णन किया है।
अस्मिं स्तु कति चित शास्त्र विद्याः सुकर साधनाः
अभ्य स्माभि रूप दिश्यांते मंदानुग्रह काम्टाटा ॥४०॥ इस शास्त्र में मंद बुद्धियों पर अनुग्रह की इच्छा से सरल विधि वाली थोही सी ही विद्याओं का वर्णन किया जायेगा।
प्यात्वैवं परटा भत्तया प्रोक्ता विद्याधि देवताः तत्र विधा सु कर्तव्याः सकली करणादयः
॥४१॥ इस प्रकार उपरोक्त विद्याधि देवियों का अत्यन्त भक्ति पूर्वक ध्यान करके उन विद्याओं की साधन विधि में सकली करण आदि करे।
सकली करेणन बिना मंत्री स्तंभादि निग्रह विधाने
असमर्थस्तेन आदी सकलीकरणं प्रवक्ष्यामि ॥४२ ।। मंत्र स्तंभन आदि निग्रह के विधान से सकली करण के बिना मंत्री समर्थ नहीं हो सकता अतएव शुरू में सकली करण को कहेंगे।
सि साधयिषुणा विद्या म यिनेनेष्ट सिद्धये रात्स्वस्य क्रियते रक्षा साभवेत्सकली क्रिया
॥४३॥ विद्या साधने की इच्छा वाले को निर्विघ्न इष कार्य की सिद्धि लिये अपनी रक्षा वह सकली करण क्रिया है।
झं ठं स्वरा वतं तोय मंडल द्वय संवत्तं तोटोन्यस्य ततस्तेन स्नायान्मंत्रमिमं पठेत् सं बिदुंकं चवर्गस्य मध्ये कृत चतुष्टयं
चतुर्थे टांत संवोष्टयं कलाभोमंडल द्वयं एक पत्र पर झंव को पृथक सोलह स्वरों से वेष्टन घेरकर उसके बाहर दो जल मंइलों से घेरकर स्नान के जल से इसे रखकर यह मंत्र पढ़े। अथवा । अर्ह के चारों तरफ चवर्ग के चौथे अक्षर झ को अनुस्वार सहित करके अर्थात् झं को टके अंत में आने वाले ठः अदार से वेष्टन करके स्वर लिखकर दो जल मंडल बतावे। RABIDI5DISTRISTOTSIDEO ६९ P1521501501525512552IER