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CARRIERSIOTSIRSARI5 विधानुशासन 950151052151315015 जो कोई पुरुष उस मटिका सर्प के मुख पर मारता है वह खटिका सर्प उसी को डंस लेता है तब दष्ट पुरुष हाथ में इँसने के चिन्ह को देखकर विष की वेदना से पीडित होकर मूर्छित हो जाता है। फिर बुद्धिमान पुरुषउस खटिका सर्प के द्वारा इंसे हुये पुरूष के हृदय कंठ मस्तक और सिर को क्रमशः देखे कि स्तंभन ही है या आँखो को धोखा है। स्तंभन का निश्चय हो जाने पर खटिका में उतारे हुए सर्प पर ॐ क्षां क्षीं इस मंत्र को पढने से वह दष्ट पुरुष विष को छोड़कर भोजन कर सकता है, अथात् निर्दिष हो जाता है।
ॐकों प्रोत्रीं ठः मंत्रण विषं हुंकार मध्येगं जप्त्वा सूर्य दिशांदि लोक्य भक्ष्येत्पूर कांततः ॥ ॐकोंपों त्रीं ठःमंत्रण अलेन मंत्रेण विषं स्थावर विषं कथ भूतं स्थावर विषं कथं भूतोहुंकारःमध्यगं करतलहुंकार मप्टो स्थित विर्ष जप्त्वा कथेतमंत्रेण अभिमंत्र्य सूर्य रविं दिशां अवलोक्य निरीक्षां भक्षोत विष भक्षणं कुयात् पूरक द्योगान || तन्मंत्रोद्वार को प्रोत्रीं ठ इति विषभक्षणा मंत्रः हथेली पर हुं लिखकर उसके अन्दर स्थावर विष को रखे फिर उस विष को ॐ क्रों प्रों त्रीं ठः इस मंत्र से मंत्रित करके सूर्य की तरफ देखकर पूरक योग से विष को खाये।
प्रतिपक्षाय दातव्यंध्यात्वा नील निभं विषंग्लौम्लौंमंत्रयित्वातु ततोघेघेति मंत्रिणा
प्रतिपक्षाय शत्रु लोकाय दातव्यं देयं कि कृत्या प्यात्वा ध्यानं कृत्वा कथं नील निभं नील वर्ण स्वरूपं कं विषां मूल विषं ग्लौ म्लौं ह्रौं ये इति प्रति
पक्षाय नील ध्यानेन युक्त विष दानं मंत्र । मंत्री ग्लौं म्लौं ह्रौं घे घे इस मंत्र से विष को मंत्रित करके उसको नील वर्ण का ध्यान करके शत्रु को देवे।
मुनि हय गंधा घोषा वंध्या कटु तुंविका कुमारी च त्रिकटुक कुष्टंद्रय वा घंति विषं नस्ट पानेन ।।
मुनि अगस्ति हय गंधा अश्वगंधा घोषां देवजाली बंध्या वंध्या ककौटि कटु तुंबिका कटु कालाबुका कुमारी धतकुमारी च समुच्चो त्रिकटुका त्र्यूषण (साँठ मिरच पीपल) कुष्ठत्वकां इन्द्रयवा कुटज बीज पीडा प्रति नाशयति विर्ष स्थावर जंगम विषां नश्यं पानेन एतद औषधानां नश्येन पानेन सर्व विषं नश्यति॥ अगथ्या असगंध देवदाली वाझ ककोड़ा कड़वी तुंबी गवार पाठा सोठ मिरच पीपल कूठ इंद्रजों को सुंघाने या पिलाने से सभी विष नष्ट हो जाते हैं।
SSIOISOISIOTERS/525{७३३ PIDERERISTOTICISIOISOIN