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________________ SADIVASICATI501585 विधानुशासब PASSISTOREYSISTTISION घिसे हुए चंदन और उसके चूर्ण को खाता हुआ क्षणमात्र में सुपारी में पैदा हुए भद को जीतता है। गुडं खंड सितां क्षीर मपि धतूर जे विषे, पिवेत्समस्तं वा पदममथवा तदंलीय की ॥१९९॥ (चोलाई) गुड़ खांड (शक्कर) और दूध अथवा सम्पूर्ण पदम (कमल) अथवा तंदुलीयक बाय विडंग को धतूरे के विष में पीये। भागैर कोलस्य त्रिभिद्युतो भाग एक आजस्य, विजयामे रंडोद्भव तेल युता जयति धतूरं ॥२०॥ तीन भाग अंकोल एक भाग मयखन और एरंड के तेल का प्रयोग धतूरे के विष को जीतता है तथा विजया (भाग) के विकार को भी जीतता है। यः को द्रवस्य मूले निपीतेन समुद्भवत, विकार स्तस्य विजया विजयाय प्रकल्पते |२०१॥ जो कोई कोंद्रय कोंदो की जड़ को पीता है वह विजया (भांग) के विकार पर विजय पाता है। दुष्ट कोद्रव संभूतां व्यापत्तिम वलुपति, अभया मधुकं जंबु फलं सैंधव मे वच ॥ २०२॥ अभया (हरडे) मधुकं (महुया) अंयुफल (जामुन } सैंधव नमक दुष्ट कोद्रव (पुराने कोंदो) से उत्पन्न हुए विकार को दूर करते है। मूच्छावरक संभूतां विध्वंसयति यिक्रियां, चिंचाम्लं सेव्यं वा गव्यं पयो पामार्ग एव या ॥ २०३॥ इमली की खटाई अथवा अपामार्ग (चिरचिटा) का गाय के दूध के साथ किया हुआ प्रयोग वरक (भौंरा) से उत्पन्न हुयी मूर्छा के विकार को नष्ट करती है। पीतो गुडेन कूष्मांड रसः कोद्रवानजं, अपा कर्तुमलं यद्वा पुष्पं शुक तरुद्भवं ॥२०४।। गुड के साथ पिया हुआ पेठा का रस अथया शुक तरू (सिरस) का फूल कोंदो के अन्न से उत्पन्न हुए विकार को नष्ट करता है। ಪರಿಸ934 VIEWS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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