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959595959595 विद्याभुशासन 959595959595
आरुष्कर विकारेषुनावा बिप्त धृतिं दुका,
॥ २०५ ॥
शारिवा व हिता पाने से चने लेपने पिचः विप्त धृतिं (द्विज प्रिया) सोमलता तथा इंदुका (सोमलता ) को सुंघाने अथवा शारिबा (गोरीसर) व अनन्त मूल को पीने से लेप करने से भिलावे का विष शान्त होता है ।
शालिपिष्टेन दातव्यं: धान्यांभः सहितेन प्रलेपनं, आरुष्का विकारचंसे को मूर्वा रसेन वा
॥ २०६ ॥
शालि (चावल) की पिट्टी धान्यांभ (धान्य का पानी) को देने या साथ लेप करने से अथवा मूर्वा के रस का सेक करने से आरूष्कर (भिलावे) का विकार नष्ट होता है।
सिंचेत नालिकेरस्य क्षीरेणा रुष्करोद्भवे, श्रयथो निपीवेद्वारि साधितं पप्पटेन वा
॥ २०७ ॥
भिलावे से उत्पन्न श्वयथु (सूजन) को नारियल के दूध से सींचे अथवा पर्पट (पापड़ा) में सिद्ध किये जल को पीवे ।
पुनर्नवेन यष्टवा वा नवनीतेन वा युतैः, तिलैर्भलात शौफग्रो लिंपेत् तिलज या थवा
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पुनर्नवा ( साठी) यष्ठी (मुलहटी) को नवनीत (मक्खन) के साथ तिलों का लेप अथवा तिल और अजया (भांग) का लेप भिलावे की सूजन को नष्ट करता है !
मेगनादं पलाशस्य बीजं च घृत कल्कितैः,
लिप्ते शोफं क्षणेनैव विहितो रूष्करा कृतं
॥ २०९ ॥
मेघनाद (चोताई और पलाश (छीले) के बीजों का घृत में बनाया हुवा कल्क का लेप करने से भिलावे की हुयी सूजन क्षण मात्र में अच्छा कर देती है ।
तांबूलं शंख चूर्ण च क्रमुक स्य फलं तथा, पिष्टवा लिप्तान्य पा कुर्युः भलातः श्रयथु व्यथा
॥ २१० ॥
तांबूल (पान) शंख का चूर्ण क्रमुक फल (सुपारी) को पीसकर लेप करने से भिलावे की स्वयथु (सूजन) नष्ट होती है।
कल्की कृतेन रचितं पर्पटेन विलेपनं, भातक समुद्भवं कुंड शोफादिकं हरेत्
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॥ २११ ॥