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________________ STRICISTOISISTERISTOT5 विद्यानुशासन NSDISTRISTOTSDISORI कृत्रिम विषस्य श्री नीलकंठ मंत्रण मंत्रवाद विशारदः, अंते निरोध युक्तेन स्थावरं गरलं होत ॥१७९॥ ॐ नमो भगवते गरुडाट महेन्द्र रूपाय पर्वत शिरवाराकार स्वरूपाय संहर संहर मोच सोचा चालनालग पाता पातय निर्विष निर्विष विष ममत महारय सदृश मिमं भक्षयामि मधुर लल लल वव व वक्षि पहः हः ठाठः ॥ स्थावर विषं निहन्यादमुनालक्ष प्रजाप्प सिद्धेन, तत् स्वयमद्यादन्यांशि भौजे निर्विकारः स्यात ॥१८०॥ इस मंत्र को एक लाख जप से सिद्ध करके स्थावर विष को नष्ट करे। इस मंत्रसे स्वयं विष खाने और दूसरे को खिलाने से कोई भी विकार नहीं होता है। रजन्या हयगंधाया पन व शिफा जयेत, अंज गमं विषं सर्व पीत्वा वार वादिता थवा ॥१८॥ हल्दी असगंध और पुनर्नवा (साठी) या (वंध्याया बांत्र ककोड़े) की जड़ को पीने या खाने से सब प्रकार के स्थावर (अंजगम) विष नष्ट होते हैं। निशा सैंधवयोश्चूर्ण सूक्ष्मं धृतं विमिश्रितं, लिपीतो नाशयेत् सर्वं विषं स्थावर संभव ॥१८२॥ हल्दी और सेंधा नमक के चूर्ण में थोड़ा घी मिलाकर पीने से सबप्रकार के स्थावर विष नष्ट हो जाते है। लीठः सिताज्य संयुक्तर्ण स्तम्रा सुवर्णयोः, स्यात् स्थावर विष प्वांत संतानैक दिवाकरः |१८३॥ ताम (तांबा) और सुवर्ण (सोना) के चूर्ण (भरम) को घी और शक्कर सहित चाटना स्थावर विष रूपी अंधकार की संतान को नष्ट करने के लिए एक ही सूर्य है। लंदगस्य हरीतस्या अपि चूणों निपायित:, कर्पूर कांजिक विषं हत्य शीतेन वारिणा ॥१८४॥ लौंग और हरडे के चूर्ण को कपूर और कांजी और ठण्डे जल के साथ पीने से विष नष्ट हो जाता
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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