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________________ PSPSP5959515 विधानुशासन 2595959595951 नव दंत विषापहः जलेन गो जिव्हिया पिष्टया घृत मिश्रयालेपः, स्यादखिलप्राणि गोजिहिका (गोभी) को जल में पीसकर घृत के साथ लेप करने से सब प्राणियों के नखों और दांतों का विष नष्ट होता है । ॥ १७३ ॥ द्विनिशा गेरिकै लॅपोनखं दंत विषेहितः, से कोऽथवा वटारिष्ट शमीत्वक कथितै ज्जलैः ॥ ९७४ ॥ दोनों हल्दी और गेरिक (गेल) का लेप नखो और दांतो के विष में हितरूप है। वड़ और अरीठे और शमी (केज) के वृक्ष की छालों के साथ क्वाथ के जल का सेक भी हितरूप है। घनानाद शिफा पीता पिष्टा तंदुल वारिणा, प्रणाशयेत धृतो पेता निखिलं कृत्रम विषं ।। १७५ ॥ घननाद (नागरमोथा) की जड़ को चावलों के पानी से पीसकर पीने से अत्यन्त कठिन कृत्रिम विष भी नष्ट होता है ! चूर्णः सूक्ष्म कषायो वा कष्णां कोल समुद्भवः सेवितः स्यात् क्षणादेव कृत्रिम वेल वेग जित ॥ १७६ ॥ कृष्ण (काली मिरच) और अंकोल से निकले हुए या उसके चूर्ण का सेवन करने से क्षण मात्र में ही कृत्रिम विष का वेग जीता जाता है। धान्य पकौभद्रमुस्तैला मांसि गोलि सुवर्चला, बालकं पिप्पली लोद्रं गणो द्वषि विषापहे ।। १७७ ।। धान्य पको () भद्रमुस्ता (नागर मोथा) एला (इलायची) मांसि (जटामांसि) गोलि (गोभी) सुवर्चला (कालानमक) बालक (काली मिरच या नेत्रबाला) पीपल पठानी लोद्य बनावटी विष को नष्ट करने वाला गण है। कांचना रेणु मुडियां कंटकार्य्या च कल्किता खातो हंति विषं स्त्रीभिर्वश्याथषधि साधितं ॥ १७८ ॥ कांचना (नागकेशर) रेणु (रेणुका) मुंडिनी और कंटकारि के कल्क को खाते ही कृत्रिम विष नष्ट होता है। यह स्त्रियों को वश्य करने वाले औषधि के रूप में भू प्रयोग किया जाता है। PPP ७२१ Pa 950 でらでらでら
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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