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S5I01519651015101505 विद्यानुशासन HSTERSIOTECISITORIES
पान लेपनयो ईतं शिरीषं त्र्यूषणं युतः, पंचागं पायटोत् सद्यो जेतुं शतपदी विषं
॥१६७॥ सिरस और त्र्यूषण (सोंठ मिरच पीपल) के पंचाग को पिलाने और लेप करने से कानखजूरे का विष तुरन्त ही जीता जाता है। इति शतपदी विषस्य
स्जुकक्षीर कल्कितैः वीजैः शिरीषस्य विलेपनं,
अलं शमयितुं तीनां दर्दुरवेल वेदनां । ||१६८॥ स्नूही (थूहर) के दूध में कल्क किये हुए सिरस के बीजों का लेप मेंढक क विष की वेदना को शांत करता है। दुर्दर विषस्य
महावक्षपयं पिष्टीः शिरीष स्यास्थिभिः,
कतानिराकरिणा मंडूक विषमा लेपनादिकः ॥१६९ ॥ सिरस की लकड़ी और महावृक्ष () को दूध की पिट्टी का लेप आदि करने से मेंढक का विष नष्ट होता
लिप्ते है टांग हरिद्रा शारिबा शिफेघोरं, विषम पास्टोति स विषाणां जलौक सां
॥१७०॥ हेयंग बीन (मक्खन) हल्दी शारिबा (गोरोसर) की जड़ के लेप से विषवाली जोंको का घोर विष भी नष्ट हो जाता है।
जल्का विषस्य
पिंडे न यव सक्तूनां सघतेन धतं वणे, सं स्वेदनं भवेत् सटा: अंगी मत्स्य विषापहं
॥१७१।। जौ के सत्तू में घृत मिलाकर उसके पिंड को जख्म पर लगाने से पसीना आकर शीघ्र ही श्रृंगी मत्स्य का विष नष्ट होता है।
पंडितं मूल सयुक्त माज्यो पेतं कटु त्रयं, पान लेपादिभिहाति विगं मत्स्य समुदभवं
॥१७२॥ पंडित() की जड़ और त्रिकटु (सोंठ, मिरच, पीपल) को घृत के साथ पिलाने और लेप आदि करने से मछली से उत्पन्न हुआ विष नष्ट होता है।