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505ICSIRIDIO1505 विद्यानुशासन 98510551051815101510151 दोनों यामनि (हल्दी) और (दाल हल्दी) अधिकांड (स्वर्णक्षीरी= सत्यानाशी बड़ी कटेली) चिंचा (इमली) से घाव को खोदकर उसके पश्चात् धान्य और अमृता (गिलोय ) में घृत का लेप करे।
द्रोण द्वय स्वरसं किंचि चूर्ण स्तैलेन संयुतः,
पीतो लुप्तो वानसि विषं हरति सितेहा शिफैकाया ॥१६२॥ दोनों द्रोण (द्रोण पुष्पी) और उस बेल के स्यरस में उसके चूर्ण और तेल को मिलाकर पीने से या लेप करने से और सूंघने से विष नष्ट हो जाता है। द्रोण पुष्पी को गोमा या दइगल कहते हैं।
द्वयें दंयासा यव पुरख्या विषया चानास्थिका,
विषेलेपं विदधीत पीत वर्णे:पर्णेर्वा पनस वृक्षस्य ॥१६३ ॥ दोनों ऐंद्री(इलायची) यय( जौ) इंद्रजो (कुड़े के बीज) पुखी (सरफोंका ) विषा (अतीस) और धानास्थिका (सोमराज) का बि में लेप कर अथया पनस (कटहल) वृक्ष के पीले रंग के पत्तों का लेप करे।
हंति भूलम हिनायाः पिष्टं मूष्णेन वारिणा, जावन क्रियया सर्वगोधा विष समुद्धति
॥१६४॥ अहिस्सा(नागबेल) की जड़ को गरम पानी से पीसकर सुंघाने से छिपकली की सब विष दूर हो जाता
द्वि हरिद्रा द्विकंरज व्योष कपित्थ पिप्पल रविबीजैः,
पानाध्यप युक्तैनशयेद गृह गोधिका गरलं ॥१६५॥ दोनों हल्दी दोनों करंज व्योष (सोंठ मिरच पीपल) कपित्थ (कैथ) पीपल के पेड़ के बीज और आक के बीजों को पीने से नस्य लेने या या लेप करने आदि से छिपकली का विष नष्ट हो जाता है।
गृह गोधा विषस्य
दीपवर्ते रथोवक्रं गृहीताया विनिद्भतैः दाहै:, सतपदी दंशे विषहत् तैल बिंदुभिः
॥१६६॥ मीठे तेल की दीपक की बत्ती का मुख नीचे को करके उससे जख्म में तेल की बूंद चुआकर जलाने से शतपदी (कानखजूरे कानछला) का विष नष्ट हो जाता है।
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