SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 720
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ CASIRIDIOSSIONSISTS विधानुशासन HDPSRISTOT50510155 सफेद आक दोनों वर्षा भूमूलं (दोनों पुनर्नवा) दोनों सेलू( लिसोठे) कैथ पाटल (पुन्नाग) वृक्ष और सिरस का लेप आदि करने से मकड़ी का सम्पूर्ण विष नष्ट हो जाता है। कणा निर्गुडी चंदन पद्माक तांबूल पाटली कुष्टाः नताकाश शारिबा अपि लूता विष हुतागणो भाणितः ॥१३२॥ कणा(पीपल) लिगुंडी (सम्हालू) चंदन पद्माख ताम्बूल (पान) पाटली कूट नत तिगर पादिका) काश (दुर्बा) शारिबा) गोरोसर भी मकड़ी के विष को हरन वाला गण कहा गया है। नत कुष्ट शिशिर पाटल निगुंडी शारिबा द्वयोशीरा काश द्वितीयं पर कमबुज लुतो हरो वर्गः ॥१३३ ।। नत (तगर पादिका) कूट शिशिर (कपूर) पाटल पुन्नाग निगुंडी गोरोसर दोनों खस काश (डाभ) दोनों पद्मान और अंबुज (कमल) मकड़ी के विष को नष्ट करने वाले वर्ग (द्रव्य) है। कंदेन लेपः कमैयां काकिन्याच कल्कितः शीताभिः कल्कितेनाभिलताशीफ हरोमतः ॥१३४॥ कर्कोटि (काकड़ी) के कन्द काकिन्या के कल्क को ठण्डा करेक(ठण्डे पानी से कल्क बनाकर) लेप करने से मकडी के विष को और सूजन को नष्ट करने वाला माना गया है। पिष्टं निपिवै चिंचा मंदा मंदाकं लूतिकां शूनी पासा लूताव्रणां नितान्यातैलं तनैव सं सिद्धां ॥१३५ ॥ (चिंचा) इमली मंदा() मंदाकं लूतिका() को पीसकर कुत्ती के दूध के साथ पीसकर पीने से अथवा इन औषधियों के कल्क से सिद्ध किया हुआ तेल से लेप करने पर मकड़ी का जखम जो काटने से ही मिट जाता है। अंकोलस्याथ गंजायाःशिफालता विषापहृतः पान लेपनस्टोषु वितीर्ण कल्कितार्णा सा [१३६॥ अंकोला और गुजा की जड़ के अर्णसु (जल) में बनाये हुए कल्क को पीने से या लेप करने से तथा सूंघने से मकड़ी का विष दूर होता है। लूता विषस्य सिद्धायुत प्रजाप्पेन क्षेत्रपालाधि देवतांश्च शिंवादी विषं हन्यान्मातृकांबुज कर्णिकाः ॥१३७॥ SSIOISTOSTS5DISIOAD5[७१४ PISITORISIO15101510151055
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy