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SORI5015015125505 विधानुशासन PAS01501501505OST
हरिद्रा द्वय वातागः मंजिष्टा नाग कैशरे:
फणिज्जगेण चा लेपो निहन्या लूतिका विषं ॥१२५॥ दोनों हल्दी यातार्क (वेगण) मंजठि नाग केशर और फणि जग(सांप काटे हुए के लेपलूती (मकड़ी) के विष को नष्ट करता है।
सर्जत्स शुक्लका चूर्णे गंध सिता सर्ष पा
अर्क दुग्धाच लूताया मूत्र विषाप हेमेषां लेप प्रभांपते ॥१२६ ।। सर्जरक (राल) के रस श्रुक्लका (क्षीरिणी) के चूर्ण गंध शकर और आक के दूध को मूत्र के सात लेप करने से मकड़ी का विष दूर होता है।
देवी निर्दिग्धीका दलताल नवा केकि पिच्छनत
मरिचैः राजिवचा हिंगुभिरपि धूपो लूता विकार हरः ॥१२७।। देवी(मूर्वा) विदिग्धिका (कटांकारि केपत्ते) हड़ताल पुनर्नवा साठी) मोर की पूंछ नत (तगर पादिका) मिरच राई यच हींग की धूप से मकड़ी का विकार नष्ट होता है।
विश्च द्वि निशा गंजा निगुंडांकोल दल करंज फलैः
स कथितेन जलन कतः से का निरूणद्वि लूतानि ॥ १८ ॥ विश्व (सोंठ)दोनों हल्दी गुंजा निर्गुडी अंकोल के पत्ते और करंज का फल के जल में बनाये हुए काय का सेवन करने से मकड़ी का कष्ट दूर होता है।
श्रृंगाधैरिसरटा वा कुटालूताया विषेष्व सृग मोक्षं
श्लेष्मांतक सज गुम विभीतकस्सेक लेपाक्ष ॥१२९॥ यह (श्रृंग) आदि की जटा से मकड़ी के काटे हुए स्थान से विष का खून निकाल देवे और श्लेष्मांतक (लिसोहे) सर्ज(राल) के वृक्ष तथा विभतिक (यहेडा) से सेके और लेप करे।
रजनि लसुनोग्र गंधा सदशो हिंगुस्तर्दिका सूंठी
मूपितैरनुले पादिलूतिका विषजित ॥१३०॥ हल्दी लसुण उग्रगंधा (अजमोद) इनके बराबर हींग और आंधी सोंठ को भूत्र में मिलाकर लेप आदि करने से मकड़ी का विष जीता जाता है।
घेतार्क द्वय वर्षाभूदय सेलू कपित्थ पाटल शिरीषैः
दत्त प्रलेपनादिलता विषमप हरत्य रिवलां ॥१३१ ।। SSCISIONSISISIOTSTOISO95७१३ VIDE5I050SRKETICARRIES