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________________ CH51015ICISIOTSRI505 विधानुशासन 25TOISTOISTRISTORIES जो मंत्री अपने शरीर के अन्दर ठहरा हुआ ध्यान करके सफेद वर्ण के श्री वर्ण(श्री) को दाहिनी ओर से सूंघता है उसके बिन्दु के विष का कष्ट तुरन्त दूर हो जाता है। दष्टस्य नयनभ्यक्तं सद्य: पाश्र्थातरा श्रिते स्टाद वृश्चिक विष क्षेपे भेषजं विष्व भेषजं विश्व भेषज (सोंट) को दूसरी कटकी आंख में लगाने से बिच्छु का विष दूर जाता है। विद्ध प्रदेशे तत्पार्थ गतायां वा श्रुतौ धमेत पटु त्र्यषणमप्यै को दधानोऽलि विष छिदे ॥३७॥ पदु और त्र्यषण (सोंठ, मिरच पीपल) मेंसे एक को भी काटे हुए स्थान की तरफ के कान में फूंकने से औरे का विष दूर हो जाता है। चिंचोपितं समरिचं कवलं वा मुरचे दात लवणं श्रवणे दंश स्थानेवालि विषे धमेत् ॥३८॥ चिंचा (इमली) और काली मिरच के ग्रास को मुख में रखता हुआ अथवा कान या इँसने को स्थान में नमक को रखने से भौरे का विष नष्ट हो जाता है। पुर्नवस्य मूलं वा संचवननि कस्य वा विद् प्रदेशे फूत्कुर्यातलि क्ष्वेल वाद्या जित् ॥ ३९॥ पुर्नवा (साठी) जड़ अथवा अमिक (चित्रक) की जड़ चबाते हुए इंसे हुवे स्थान पर फूंक मारे तो भौरे का विष नष्ट हो जाता है। भूत रिपु जलधि संभव मद्देन तो वृश्चिकात्तिं मप हरति उष्ण जल से वनाा वा बंधन तो भानुपत्रस्य ॥४०॥ भूतरिपु (हींग) जलोदप्पिसंभयासेंधानमक) को मलने से बिच्छु के विष का कष्ट नष्ट होता है।अथवा यह उष्ण जल के सेवन तथाआक ( भानु ) के पत्ते बांधने से भी दूर होता है। ॥४१॥ कोष्णं सेंधवो पेतं पीत मात्रं यतं हरेत वेदनां वृश्चिक श्वेलं लमुदभूतां सु दुस्सहां कयोष्ण (गुनगुना कम गरम) घृत के साथ सेंधा नमक को पीने से बिच्छु के विष से उत्पन्न हुयी अत्यन्त दुस्सह वेदना भी नष्ट हो जाती है। SHERECIRCTRIOTECISIOD[६९८ VIDISTRISTOTTOTRICISCIEN
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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