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SHRIDORICISTRISTOTS विधानुशासन ASSISTOTSIDASCITICISS
ॐ देवदत्त बायें हाथ में जल लेकर उसे हुं पक्षि इस मंत्र से अभिमंत्रित करके उससे इंसे हुए को पानी से सींचने से समस्त विष नष्ट हो जाता है।
इति भ्रमर विष चिकित्सा
बिच्छु के मंत्र विद्धप्रदेशे तेनाश्च शिकस्टा महानपि विष वेगं शामयंतीत्यभ्यधायि मुनीश्वरै
॥३१॥
ॐ नमो भगवति एहि एहि करि करि पुरिम्सुरि पुरिस्सुरि स्वाहा या ॐ नमो भगवति एहि एहि करि करि पुरि पुरि मुरि मुरि चुरि चुरि स्वाहा ||
अममंत्र जपेन्मंत्री स्वहस्त स्पर्शनादिना वृश्चिका नाम शेषाणां निश्शेषं नाशये द्विषं
॥३२॥ इस मंत्र से बड़े भारी बिच्छु के काटे हुये भी विष के वेग को शांत कर देता है ऐसा उत्तम मुनियों ने कहा है। मंत्री इस मंत्र का जप कर यदि अपने हाथ से स्पर्श आदि करे तो बिच्छु के समस्त विष को नष्ट कर देता है।
अलि गरलस्य हदं गुष्टा नाभिकयो सद्भपर्वसंधीनां अथवा गुष्ट युगस्य स्टा दथवा गुष्ट मध्यम यो
॥३३॥
अनामिकाग्र स्वस्या गट भागेन सं स्पशन प्रादक्षिणयेन सन्मंत्री विहन्याद लिजं विष
॥३४॥ अंगूठे और अनामिका (कनिष्ठा के पास की अंगुली) के ऊपर के पोर वे अथवा दोनों अंगूठे अथवा अंगूठे ओर बीच में उंगली के छूने से भौरे का विष शांत हो जाता है। अनामिका के अग्रभाग और अंगूठे से दाहिनी ओर घुमाकर छुवा हुवा मंत्री भौरे का विष नष्ट कर सकता है।
बिच्छु के विष का ध्यान नं. १
श्री वर्ण सित वर्ण स्वांगस्थं मंत्रिणो विचिंतनयः नस्येत्प्रदक्षिण विद्यः वृश्चिक विष वेदना झटिति
॥ ३५॥
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