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षटकोण भवन मध्ये करूकुल्यां यो लिरवेविद्या,
तस्य गृहे न च तिष्ठति नागो नागारि बंधन ॥२६७॥ ॐ कुरू कुल्ये स्वाहा ।।
न्यस्यते यस्य चकांकां दलि तातरे , अपहाय पलायंते तद ग्रहं फणिनः क्षणत् ।
॥२६८॥ जो षटकोण भवन के बीच में ॐ कुरूकुल्ये स्वाहा मंत्र को लिखता है उसके घर में सांप नहीं ठहरता है। यह सौ के शत्रु गरूड़ द्वारा बांधा है। जिसके घर में इस चक्र को बनाकर रखा जाता है उसके घर में सर्प क्षण मात्र में भाग जाता है।
कुरु कुल्ये
स्वाहा
कुरु कुल्पे स्वाहा
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