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________________ SASTOTKOISTOISTRISIO5 विधानुशासन 20505CISIO550158IN प्रतिमां विनतो सुनो रूक्ष व विनिमितां, कादिषु दयनेच भुजगेन्नानि भूपते ॥ २६९ ॥ रूक्ष वृक्ष (वृक्षा भेद) की बनी हुयी विनत सुत(गरूढ़) की मूर्ति को कंठ में धारण करने से सर्प आक्रमण नहीं करते हैं। पुष्य रूक्ष सित वर्षा भूमलं मुदगांबुनापिर्वत, तस्य पार्थे भुजंगाद्याः संचरतिन वत्सरं || २७०॥ पुष्य नदान में लायी हुयी श्वेत वर्षा भूमूल (सफेद पुनर्नवा सखयरा साठी) की जड़ को मूंग के पानी के साथ पीने से नाग एक वर्ष तक उसके पास नहीं आ सकते हैं। पुनर्नवस्टयो मूलं रक्त पुष्पस्य कल्पितं, पिवेत् पुष्पेन षणमासा स्तं दशंत्य हि यश्चिकाः ॥२७२।। जो पुष्य नक्षत्र में लाई हुयी लाल फूल वाली पुनर्नवा (साठी) की जड़ के कल्क को पीता है उसको छह महीने तक सर्प और बिच्छु नहीं काटते हैं। विधिमिममुंप दिष्टं यो यथा वद्विजान्न विरत जप हो माम्टार्चनासिद्ध मंत्र:भुजंग विष विकारोन्मूलने व्याप्तः स्यात् स गरूड़ व दष्टं निर्विषी कर्तुमीष्टे ॥२३॥ जो इस उपदेश की हुयी विधि को ठीक ठीक जानता हुआ निरंतर जप होम और पूजन से मंत्र सिद्ध करता है यह इँसे हुये के सर्प के विकार को गरूड़ के समान निर्दिष करने में समर्थ होता है। इति निर्विषीकरण नाम दशमः समुच्छेदः 卐ज卐 S5015DISTRICICIETOISIOTS[६७७ PISIOISTOTRIOTSIDEOSRIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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