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________________ ಪರಿಚಯ ನೀFIRE Fಥಣಿ इति नाग सहा गमन मंत्रः इस मंत्र से सर्प पीछे पीछे चलता है और वाहि जायो कहने से चला जाता है। ॐ ह्रीं श्रीं ग्लौं हूं झुं टांतं द्वितीयंन फाण मुख स्तंभः हूं तुं ठठेति गमनं दृष्टि हां क्षां ठठेति वनाति ॥ २२९॥ ॐहीं श्रींग्लैं हूंढुंटांत द्वितीयेन उह्रीं श्रींग्लौं हूंखू ठठति मंत्रणा फणि मुरव स्तंभः मुख कीला जाता है अनेन मंत्रेण सर्प मुख स्तंभो भवति हूं खू ठठति गमनं हुं हुं ठठ इत्यनेन मंप्रेण सर्पस्य गति स्तंभो भवति दृष्टिं हां ठठति वनाति सर्प दृष्टिं हां क्षां ठ ठ इति मंत्रेण वधाति ॥ २३०॥ इति फणि मुख गति दृष्टि स्तंभन विधि: वामं सुवर्ण रेखाया गरुहाज्ञा पदत्यतः स्वाहाँ त मंत्र मुच्चार्य कुंडली करणं कुरु ॥२३१॥ वामं सुवर्ण रेखाया सुवर्णरेरदायां इति पदां गरुडाज्ञापयेत्यतःसुवर्ण रेवाय दातं रंगरुडाज्ञा पायतीति ति पदं स्वाहांत मंत्र मुच्चार्य स्वाहा शब्द मंत्यं कत्वा तन्मंत्र पठित्या कुंडली करणं कुरु कुंडली करणं कुर्वीति पदं ।। २३२ ॥ तन्मंत्रोद्धार: ॐ सुवर्ण रेरवाया गरुड़ाज्ञापयति कुंडली करणं कुरु-कुरु स्वाहा ॥ नाग कुंडली करण मंत्र: यह सर्प का कुंडली कारक मंत्र है सप्रणवः स्वाहांतो लल लल ललति संयुक्त करोत्येष: मंत्रो यट प्रदेशं क्षणेन नागेश्वर स्थापि ॥२३३ ।। सप्रणय:स्वाहांतःकार सहित स्वाहा शब्द मंत्र्य लल ललललएते संयुक्तइत्यक्षरे षटभि युक्ताः करोति कुरुते एष मंत्रः एतथित मंत्रः किं करोति घट प्रवेशां कलश प्रवेशं करोति कथं क्षणेन क्षणमात्रेण कस्य नागेश्वर्यापि नागाधि पत्य स्थापि लक्षणेन घट प्रवेशं करोति ।। २३४ ॥ eeeeeeeS/වහලකවක්
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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