SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 672
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ちゃちゃちゃ विधानुशासन 15951 ちゃちゃ पवन नभोक्षर मंत्रेण स्वाहेत्यक्षर मंत्रेण आकृष्यात् तदप्यु छादन पट माकर्षयित्वा धावति तत्पृष्टं तद्वस्त्र माकर्ण्य यः पुरुषो धावति तत्पृष्टांत्सः दष्ट अनुधावति यत्र पटः पतित तत्रासी यस्मिन स्थले तद गृहीत पटः पतति तत्रैवसौ दष्ट पुरुषः पतति स्वाहेति दृष्ट प्रछादितां पट आकर्षण मंत्रः ॥ २२५ ॥ फिर यह सर्प से दष्ट पुरुष स्वाहा इस मंत्र से वस्त्र उठाकर भागनेवाले पुरुष के पीछे भागता है और जहाँ कही वस्त्र गिरता है वहीं यह सर्प दष्ट पुरुष भी गिर जाता है। निर्विषीकरण मंत्र: मंत्रेणेनान फणि विष मुक्तो भवति जल्पितेन शनैः अपहरति निज स्थानात् दर्शितोपि विषं न संक्रमते ॥ २२६ ॥ मंत्रेणनिन अनेन वक्ष माण मंत्रणः फणि विष मुक्तो भवति सर्प विष निर्मुक्तो भवति केन जल्पितेन वक्षमाण मंत्र पठनेना कथं शनैरिति अपहरति निज स्थानात स्वकीय स्थानात् दष्टस्य विषापहो भवति असितेपि विषं न संक्रमति सर्पेन भक्षितेपि सति तस्य पुरुषस्यापि वि संक्रमो न भवति ति निर्विषीकरण ॥ २२७ ॥ मंत्रोद्धारः ॐ नमो भगवते पार्श्वतीर्थंकराय हंसः महा हंसः पदम हंसः शिव हंसः को हंसः सहश्र हंसः घरे यय हंसः पक्षि महा विषं भक्षी हुं फट ॥ इति निर्विषीकरण मंत्र: इस मंत्र को धीरे धीरे बोलने से सर्पका विष अपने स्थान से इस प्रकार से दूर हो जाता है कि फिर सर्पके काट लेने पर भी विष नहीं चढ़ता । तेजो नमः सहश्रादि मंत्रः प्रपठतः फणि अनुयातिततः पृष्टं ही त्युक्ते नियतते तेजो नमः सहश्रादि मंत्रं प्रपठन उं नमः सहश्र जिवेत्यादि मंत्र पठतः पुरुषस्यां फणि सर्पः अनुयाति ततः पृष्टं तन्मंत्र पठित पुरुषस्य पृष्ट मनुगच्छति याहित्युक्ते निवर्त्ततै सवै सर्प पुनरपि याहि याहि त्युक्ते व्याधुये गच्छति ॥ २२८ ॥ तन्मंत्रोद्धारः ॐ नमः सहश्र जिह्वे कुमुद भोजिनि दीर्घ केशिनी उच्छिष्ट भक्षिणी स्वाहा || やすやすやすやおでこちゃちゃちゃち
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy