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________________ SERISTRISTOTRICITOS विधानुशासन ABIRTICISEDICTION माण कस्मात ललाटान भल स्थलात दूतं प्रेषकं मंत्रेण पातयेत पातयितव्यं ।।२२०॥ ॐ नमो भगवत वज तुंडाय स्वाहा रक्ताक्षी कुनरवी दूतं पातय पातय मर मर घर धर हु फट घेघे॥ इति दूत पातन मंत्र: इस मंत्र से दष्ट पुरुष के शरीर से विष को खींचकर मस्तक से अमृत चुवाता हुआ उपरोक्त दूत मंत्र से दूत को गिरावे। इंलाभो फट मंत्रो चारणातः पतति भोगिना दष्टाः ॐहोमादि फंडतो दष्ट पटाछादनो मंत्रः ॥ २२१॥ इंलामो फट मंत्रो चारणात: ईलांॐ फट इत्यनेन मंत्रो चारणात पतति भूमौ पतित कः भोगिना दष्टः सर्पणा दष्ट पुरुषः ||२२२॥ ॐ होमादि फट अंतःॐ स्वाहा शब्दमादि कत्या फट शब्दं मंत्यं वक्षमाणा मंत्रः पतित दष्ट पुरुष शररोिपरि वस्त्र प्रच्छादन मंत्र: मंत्रोद्धारः ॥२२३॥ ॐलां ठं फडिति दष्ट पालन मंत्रः ॐ स्वाहारुरुरुरुरुरु हा ब्ले ह सर्व संहारय संहारय ॐ दूं गरुड़ा क्षीं तुं फट् इति दष्ट पटाछादन मंत्र; ई ला उँ फट इस मंत्र के उच्चारण से सर्प दष्ट पुरुष पृथ्वी पर गिर जाता है। ॐ स्वाहा रूरू रूरू हा ब्लें ह सर्व संहारय संहारय गुंगरूडाक्षी ९ फट। इस मंत्र से उस गिरे हुये सर्प से दष्ट पुरुष को वस्त्र उठाना चाहिये। पवन नभोक्षर मंत्रणा कष्य च धावने त तो वस्त्रं अनु धावति तत् पृष्टं यत्र पटः पतति तत्रासौ ॥२२४॥ CASIO15121512152151005215६६५ PISADISIOSDISTRISTOTSOISI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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