SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 670
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वाल्मीक निकटे वामलूर समीपे होम हवन कुत्ि करोतु कथं त्रि मधुरान्वितं क्षी राज्य शर्करा मिश्रित प्राग् जप कृत प्रसूनान्वितं मंत्र सिद्धै ॥२१२ ॥ एतद् विधान मंत्र सिधिं प्राप्तयां तमाज्ञा तं, नागेश्वर माज्ञा कृत्वा प्रेषये त उरगेश्वरा नागेश्वरं क्षुद्र कर्म करणे प्रस्थापयेत् || २१३ ॥ वह नाग छोटे-छोटे कार्यों में लगाने का मंत्र, अस्सी सहजप और लाल कनेर के फूलों के दशांश होम से सिद्ध होता है। इस अनुष्टान को घृत, दूध और शक्कर मिलाकर वाल्मीक सर्प की बांबी के पास करे। जब मंत्र होने पर नाग आवे तो उसे इच्छित स्थान पर भेजे। प्रेषितो हवनेनेति मा कस्यापि गुरो वदेत अन्य मंत्रेण मागच्छ मानवं भक्षया मुकं ||२१४॥ प्रेषितः प्रस्थापितः कः अहं नाग के अनेन मंत्र वादिना एवं मा कस्यापि पुरोवदेत कस्यापि पुरुष स्थापगे मात्र देशे मा भाषय ॥२१५॥ अन्य मंत्रेण मागच्छ एतन्मंत्रं विहायान्य मंत्रेण त्यमा गच्छा मानवं भक्षया मुकं अमुक पुरुष भक्षय ॥२१६॥ और उससे कहे तू इसके अतिरिक्त दूसरे मंत्र से मत जा और अमुक व्यक्ति को भक्षण कर किन्तु इस प्रकार उसको हवन के द्वारा भेजने का वृतांत किसी से नहीं कहे। फणि दष्टस्यशरीरान्त स्वाहा मंत्र तो विषं हत्या सोम श्रवललाटात मंत्रं पातयेत् फणि दष्टस्य शरीरात् सर्प दष्टस्य पुरुषस्य देहात् ॐ स्वाहा मंत्रतः ॥२१८॥ ॐ स्वाहेत्यादि वक्ष माण मंत्रात विषं दष्ट पुरुष देह स्थ विषं हत्वा कथं सोम श्रवण अमृतं श्रवण ॥२१९॥ CASTOTRICT512505R15915६६४ PEPISOISTRIDDISCTRICISI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy