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PSP59SPSS विधानुशासन P551
तन्मंत्रोद्धारः
उ ल ल ल ल ल ल स्वाहा !!
इति फणि पट प्रवेशन मंत्र ॐ ह्रां ह्रीं गरुड़ाज्ञापयेति ठ ठ इत्यनेन तन्मुद्रया गरुड़मुद्रा कृतां रेषां मंत्रिणा भूमौ रेखा कृतां भुजंगो मरणावस्था प्राप्तः न लंयतो लंचनं च न शक्रोति कदाचिदपि कस्मिश्चितत्त्कालेपि उं ह्रां ह्रीं गरुड़ाज्ञा ठ ठ इति रेखा मंत्रः ॥ २३५ ॥
हरहर
ॐ ह्रां ह्रीं गरुडाज्ञा टठति तन्मुद्रया कृतां रेखां भुजंगो मरणावस्थां म लंघते तां कदा चिदेपि
ॐ ल ल ल ल ल ल स्वाह यह मंत्र नागों के राजा को भी घड़े में घुसा देता है।
ॐ ह्रां ह्रीं गरुड़ाज्ञा ठटः इस मंत्र से बनायी रेखा को सांप मरण अवस्था होने पर भी उल्लंघन नहीं करता है ।
कपिकच्छुक रस भावित खटिका प्रणवादि नील परिजता रेषा स्तेयापदेशा तवाटिका सर्प शनैर्वारो
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॥ २३६ ॥
कपि कच्छुक रस भावित खटिका कंडु कंडी रसेन सप्तवारो भावित खटिका प्रणवादि नील परिजप्ता सा खटिका उंकरादि नील मंत्रेण समंतात जप्ता लेख्य स्तयों तया खटिया लेखनीयः कथं उपदेशात उपदेश पूर्वेणाः कः खटिका सर्पाः कस्मिन शनैवार शनि दिने ॥ २३७ ॥
यो हन्यात् वद् वक्रं तं भोगी दशाति नात्र संदेह दृष्ट्वा करतल दंशं मूर्च्छिति विष वेदना कुलितः
ॐ नील विष महा विष सर्प विष संक्रामणी स्वाहेति विष संक्रामण मंत्रः ॥ खडिया मिट्टी को कांच के रस में सात बार भावना देकर उसका उपरोक्त मंत्र से मंत्रित करके उससे शनिवार को शास्त्र के उपदेश के अनुसार एक खड़िया का सर्प बनाये |
॥ २३८ ॥
यो हन्यात् वद् वक्रं खटिका सर्पवदनं यः पुमाना हंति तं भोगी दशति तं हिसंक पुरुषं खटिका सर्पों दशति नात्र संदेह अत्र खटिका सर्प विधाने त देहो न कार्यः दृष्टवा करतल दंशं तत्सर्प दशन दंश करतले दृष्ट्वा मूर्छति स पुरुषो मू प्राप्नोति कथं भूतं विष वेदना कुलितः विष जनित वेदना निराकुलितं स्यात् ॥ २३९ ॥ P/50505PSPSPSPSE PS252525252525