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________________ S5I05015015015015 विधानुशासन 1501510150150ISSIST नया स्य वाम कर तर्जन्या चालन तः कथं अविरात् शीघतः ॥१७९॥ संयोमारः पक्षि ॐ स्वाहा संप्लावध संप्लावय इति विषापहारः इस मंत्र को बाँयें हाथ की तर्जना द्वारा चलाने से विष शीघ्र ही दूर हो जाता है। इति विषनाशन विधानं मरुदग्नि यारि धात्री व्योम पदं संक्रम व्रज द्वितीयं, चालनया नाभिकयानितरां विष संक्रमो भवति ॥१८०॥ मरुन स्याकार अग्रि ॐकारः वारिपकारः धात्री क्षकार: व्योम पदं हकार: स्य वाम करा नामिकां गुल्यां चालनेन नितरां ॥१८॥ अतिशयेन विष संकमो भवति पर मन्यं प्रति विषं संक्रमो भवति ॥१८२॥ मंत्रोद्धारः स्या ॐ पक्षि ह संक्रम संक्रम ग्राज ाज इति विष संक्रम मंत्रः इस मंत्र को बाँये हाथ की अनामिका अंगुली द्वारा चलाने से विष संक्रमण हो जाता है। व्योम जल वन्हि पवन क्षिति युतःमंत्रो दभवति अथावेश संक्षि पहःप क्षि पह पठनेन कनिष्टिका चालनतः ॥ १८३॥ व्योम हकारःजला पकारः वन्हि ॐकारः पवनः स्थाकार: तिति युतःक्षिकार युक्तः मंत्रोदभवति ॥१८४॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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