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________________ 959529595952 विधानुशासन 5 इति दष्ट स्तोभ विधानं इस मंत्र को मध्यमा उंगली पर जपने से दष्ट पुरुष कुछ जागने लगता है। आते भू बीजं मध्य जल वह्नि मारुतं योज्यं स्तंभय युगलं स्तंभे धारा गुष्टदानन्दः आद्यं ते भू बीजं मंत्रा दौ मंत्रांते पृथ्वी बीजं क्षि इति मध्ये जल वह्नि मारुतं योज्यं मंत्र मध्ये प ॐ स्वेति बीजानि योजनीयं स्तंभन युगलं तद अग्रे स्तंभयेति पद द्वयं स्थंभय स्तंभय अनेन कथित मंत्रोच्चारणेन विष पसरे स्तंभो भवति कथं वाम करांगुष्ट चालनेन विष प्रसर स्तंभो भवति विष स्तंभो भवति मंत्रोद्धारः क्षिप ॐ स्वाहा स्तंभय स्तंभय क्षि इति विष स्तंभन मंत्र: इस मंत्र को बाँये हाथ के अंगूठे पर जपने से विष का स्तंभन होता है । जल भूमि वह्नि मारुत गगनै संप्लायां द्वयो पेतैः भवति च विषापहारः स्तर्जन्यां चालनाद् चिरातः जला पकार: भूमि विकारः वह्नि ॐकारः मारुतः स्वाकारः गगनी हाकार: इति पंच बीजाक्षरै कथं भूतै संप्लावटा द्वयोपेतैः संप्लावयेति पद द्वयान्वितैः भवति रस्या देवः कः विषापहारः विष निर्विषीकरणं कस्मात तज॑न्यश्चाल eepes 195 ६५८ P55 ですやすやり !! 100 !! ॥ १७२ ॥ ॥ १७३ ॥ ॥ १७४ ॥ ॥ १७५ ॥ ॥ १७६ ॥ ॥ १७७ ॥ ॥ १७८ ॥ でらでらです eur
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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