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________________ CHEDEOHDRASOID विधानुशासन BASIC5555755ICISISIST नाम संयुतं दष्ट नाम गर्मी कृतं दलेषु वहि स्थित चतुईलेषु शेष भूतानि इतर ॥१६३॥ क्षि पॐ स्वेति चतुर्वी जानि त द्वलेषु मायसा परि रक्षितां तत्पयो परि ही कार ॥ १६४ ॥ त्रिधा वेष्टितं लिरिवत्वा दष्टस्य गले वधीयात् अथ चंदनेन दष्ट वक्ष स्थले देत यंत्रं लिरवेत ॥१६५ ।। इति रक्षा विधानं इदानी स्तोभ करण मारभ्यते रक्षाः वहि जल भूमि पवन व्योंभारे दह दह पच दयं योज्यं स्लोभय गुगल तो माटाका माललाद्भवति ॥१६६ ।। वह्नि ॐकार जला पकारः भूमिक्षिकार: पवन स्वाकारः व्योम हकारः अग्रे ऐतषां ॥१६७॥ पंच बीजाक्षराणांमग्रे दह दह दह दहेति पदं द्वयं पच द्रयं टोज्यं तदग्रे पच पचेति ॥१६८॥ पद द्वयं योजनीयं स्तोभय युगलं तदग्रे स्तोभय स्तोभयेति पद द्वयं स्तोभं ॥१६९॥ अनेन कथित मंत्रोच्चारणा चाटिनेन दष्टावेश कथं मध्यमिका चलनात मध्यमांगुल्या चालनात भवति जायते ॥ १७० ॥ मंत्रोद्धारः ॐपक्षि स्वाहा दह दह पच पच स्तोभय स्तोभय इति स्तोभन मंत्रः CASIO15101510501510551075[६५७ PISO15015131510750851015
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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