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पाद द्वयो नाभौ हृदि आस्ये मस्तके इत्येतेषु पंच सु स्थानेषु कथं भुतानि
पीतं हरिद्रानि भासित क्षेत वर्ण कांचना सुवर्ण वर्णयो असिता कृष्ण वर्ण
सुरचाप इंद्र धनुर्वर्ण शदृश निभानि एवं पंच वर्ण सदृश पंच बिजानि परिपाया
क्षि बीजं पीत वर्ण पद द्वयो प बीजं श्वेत वर्ण नाभौ
ॐ मिति बीजं कांचन वर्ण हृदि स्या
बीजं कृष्ण वर्ण मास्य हा बोज इंद्र
पद्मं चतुर्द्दलोपेतं भूतांतं नाम संयुतं दलेषुशेष भूतानिमायसा परिवेष्टितं
पद्मं कमलं कथं भूतं चतुर्दलोपितं चतुः पत्र युक्तं भूतांतं भूतानि पूश्चेतजू प तेजो वाखा
॥ १५४ ॥
काश संज्ञानि तेषामंतेः आकाश स
हकारः तं हकारं कर्णिका मध्ये कथं भूतं
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॥ १५५ ॥
॥ १५६ ॥
चाप स्वरूप वर्ण मूर्द्धि एवं क्रमेण पंच सु स्थानेषु परिपाद्या विन्यसेत इत्यंग नास
क्रमः
॥ १५९ ॥
क्षिप ॐ स्वाहा इन पांच बीजों को क्रम से निम्न प्रकार से अंगों में स्थापन करे । क्षि बीज को पीत वर्ण का दोनों पैरों में, प बीज को श्वेत वर्ण का नाभि में, ॐ बीज को कांचन वर्ण का हृदय में, स्वा बीज को कृष्ण वर्ण का मुख में, हा बीर्ज को इन्द्र धनुष के रंग का सिर में ।
रक्षा विधानं
॥ १५७ ॥
॥ १५८ ॥
॥ १६० ॥
॥ १६१ ॥
॥ १६२ ॥
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