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________________ 9595 विद्यामुशासन 95959595959A बुद्धिमान पुरुष दूत के मुख से विकले हुये अक्षरो को गिनकर उनको दुगुना करके तीन का भाग दे। यदि शेष शून्य हो तो मृत्यु अन्यथा जीवित समझना चाहिये। ह्रां वं क्षं मंत्रःमंत्रित तोयेनोद्ध सति यस्य गात्रं चेत्, स च जीवित्यथ वाक्षि स्पंदन तो नान्यथा दष्टः हां वं क्षं मंत्र: हां वंक्ष मिति मंत्र: मंत्रित तोयेन अनेन मंत्रिणाभिमंत्रितोदकेन त्राटितेना उद्धषिति यस्य गात्रं चेत यस्य द ष्ट पुरुषस्य शरीरं कंपते चेत् स च जीविति गात्रोद्धषन मात्र पुरुषों जीवति च अथवा क्षि स्पंदन तः अनेन प्रकारेन अक्षिरुन्मलिनेन संदष्टो जीवति नान्यथा दष्टायस्य दष्टस्य तदुदकासिंधनेन गात्रो दुषणं तदक्षि स्पंदनं च न विद्यते तस्य दष्टस्य जीवंति न विद्यत इति ज्ञातव्यां इति संग्रह परिच्छेदः क्षिप ॐ स्वाहा बीजानि क्षिप ॐ स्वाति पंच बीजानि विशेषेण स्थापयेत् केषु ॥ १४६ ॥ 259/5950 ॥ १४७ ॥ 595915 ६५५ Poser ॥ १४८ ॥ ॥ १४९ ॥ हें वंशं इस मंत्र से अभिमंत्रित जल दुष्ट पुरुष के ऊपर डालने से यदि वह कांपने लगे अथवा नेत्र हिलाने लगे तो उसको जीवित अन्यथा मृतक समझना चाहिये। अतः परं मं ग न्यास अभिधीयते ॥ १५० ॥ क्षिप ॐ स्वाहा बीजानि विन्यसेत्पदेनाभि हन्मुख शीर्ष, पीतसित कांचना सित सुरचाप निभानि परिपाद्या ॥ १५२ ॥ ॥ १५१ ॥ ॥ १५३ ॥ たらこちたら
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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