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________________ CHOOTSIOTICISITS दियालुशासन AICTERISTIATICKERIES सम विषमाक्षर भाषिणि दूतो समाक्षर भाषिणि, दूते विषमाक्षर भाषिणि दूतो शशि ॥१३६॥ दिन करौ च वहमानौ चंद्र दिवाकरौ प्रवर्त, मानौ दष्टस्य जीवितव्यं समाक्षर भाषिणि ॥१३७॥ दूतौ चंद्र वहमाने दष्ट पुरुषस्य संग्रहमस्तीति विधात विषमाक्षर भाषिणि दूते ॥१३८॥ सूर्यो वहमान पुरुषस्य संग्रहमस्तीति विधात तद्विपरीते मतिं विधात् समाक्षर ॥१३९॥ भाषिणि दूते सूरों वहमानौ विषमाक्षर भाषिणि दूते चंद्र यहमाने इति स्वर वर्ण ॥१४०॥ वैपीरीत्य दष्ट पुरुष संग्रह न विधते. इति विद्यात जानीयात् यदि सर्प के काटने की खबर लानेयाला दूत चंद्र स्वर में सम अक्षर कहे तो समझना चाहिये कि सर्प से दष्ट पुरुष यद्य जाएगा, अथया दूत सूर्य स्वर में यदि विषम अक्षर कहे तो उसकी मृत्यु समझनी चाहिये। दूत मुखोस्थित वर्णन द्विगुणी कृत्वा त्रिभिहरेगा गं सून्योनो द्वरितेन म ति जीवित मारोत्पाज्ञः ॥१४२॥ दूत मुरवोत्थित वर्णन दूतस्यो द्वात प्रसन्नाक्षरान् दिगुणी कत्य तदद्वगुणित राशि त्रिमि गं होत ॥१४३॥ तत्रा भागा वशेष जीवितमादिशेत् सून्येन दष्टस्टा संग्रहाधान मादिशेत एक द्विरुद्धरितेन । ॥१४४॥ ॥१४५॥ दष्टस्य संग्रहमस्तीस्या दिशेत सून्य समच्छेदनैक द्विरवशिष्टेन च कः प्राज्ञः बुद्धिमान् CISIOADDIACIDIOTECTED६५४ PASTORICISCIECISIONSCIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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