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________________ QಥಐಪNS ARRERS CENSE एतत्कथित मंत्रा जायत अथ पश्चात आ पुरुष शरीर नागावेश संक्षि प हे ति पदं पक्षि प हां पक्षि पहेति पठं पठनेन ॥१८५॥ एतन्मंत्र पठनेन कस्मात कनिष्टिका चालनतः वाम कर कनिष्टिका चालनात ||१८६॥ मंत्रोद्धारः हा पॐ स्वाक्षि संक्षि पह:पक्षि पहन। इति नागावेशन मंत्रः इस मंत्र को बाँये हाथ की कनिष्टा अंगुली द्वारा जपने से पुरुष के शरीर में नाग आदेश करता कर्ण जापेन भेरुंडा निर्विषं कुरुते नरं विद्या सुवर्ण रेषापि दटतो या भिषे कतः ॥१८७॥ कर्ण जापेन दष्ट पुरुषस्य कर्ण जापेन भेडा भेरुंड देव्या विद्या निर्विषं कुरुत निर्विषी करणं करोति कं नरं ॥१८८॥ दष्ट पुरुषं विद्या सुवर्ण रेस्वापि अपि पण सुवर्ण रेषा विद्या दष्टं दष्ट पुरुषं तो याभिषेक्तः सुवर्ण रेषानाम विद्याभि 1॥१८९॥ मंत्रितोदकेन अभिषेको निर्विष करोति आवेशा दष्ट नर निर्विषी करणे दष्टकरणे जाप्य ॥१९०॥ भेरुंडा देव्या मंत्रोद्धार ॐ पक्षि एहि भेमाय भेड़े विजा भरिट करंडे तंतु मंतु आयो सह हुंकारे विषु नाशई स्थावर जंगमं कृत्रम अंगजु ह्रीं देवदत्तस्य विषं हर हर हु फट || इदं कर्ण जाप्येन भेडा विद्या SSD5215035CISEXSEIS६६० DIDRESORRIERSIOSDISSIST
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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