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________________ CASIOSDIDIO1510151015 विधानुशासन 985101510150150505 शून्यं शून्य अर्थात् बिन्दु सहित शून्य ७ हकार फिर दो बिन्दु सहित सिर रहित हकार लगाकर श्वेतवर्ण के शूज्य पद में रखने से संपूर्ण विष नष्ट हो जाता है। हं हः ह एकादशाक्षरोपेतं मंत्र मंत्री प्रसाधयेत्, पूर्व विद्वान प्रयलनेन कुर्यात् कर्म ततोऽग्रिमं ।।९६ ॥ यह ग्यारह अक्षरी मंत्र है। मंत्री इसकी पहले ही साधना करके सिद्ध करे। विद्वान मंत्री प्रयत्न करके इसको आगे काम में लाये। वं हं हं इवीं हंसः पक्षि जः जःज: कुंभेषु रंगमध्ये अमृत मयं तोय मंडल समान, सं चित्य सकल लोकं सिंचे त्रत जप्तेन तोटोना ||९७॥ घड़ों में रंग भरकर उसमें अमृतमय जल मंडल का ध्यान करके जल का जप करने से सब लोक को इस जल सींचता हुआ चिंतयन करे। सं तुर्य सप्त स्वरंगे दष्ट कर युग्म आत्मनं स्तेन, इति रंग विधिं कृत्वा विष हरणं तदजु कुर्वीत ॥९८॥ चौथे और सांतवे रंग के घड़ों में सर्प से इसे हुए के दोनों हाथों को रखकर रंग विधि करने से शीघ्र ही विष नष्ट हो जाता है। आत्मानं ताऱ्या रपैण तमादायाहि भक्षितं, क्षीरां बुनीर पूर्णदुं गेहे क्षिप्तं विचिंतयेत् ||९९॥ अपने आप को सर्प भक्षण किया हुआ गरुड रूप धारी ध्यान करे फिर घर को दूध, अमृत तथा जल से भरे हुए चंद्रमा से पूर्ण ध्यान करे। मज्जनोन्मज्जने घ्यायेद् यायदभवति निर्विषः, नील नीलागिम क्ष्वेडं चिंतयेत्सततं च तत् ॥१०॥ उस चन्द्रमा में तडा तक ध्यान करने तथा फिर निकल आने का ध्यान करता रहे जब तक पूरा विष उतर न जावे और उस विष को निरन्तर अत्यंत नीला घ्यान करे। दष्टां शतस्य तस्याभि चिंतटो द्विष निर्गम, द्यावदन्निशेषं सर्पोग्र विष छेदो भवे दिहि ||१०१॥ CASTOTRIOTICIROICIDES६४७ PISIONSIOSCRIOTECISIOTES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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