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________________ SSCIROISTRISDESI05 विद्यानुशासन 950ISORDISCIRCISI + . न्यस्य वकारं शीर्षे यंषत स्वेत ममत धाराभिः, समपर्यतं सकल तनुं भवति सः संपूर्ण शशधरं हृदयो ॥११॥ सिर में श्वेत अमृत धाराओं को बरसाते हुए वकार का ध्यान करे। फिर उस अमृत धारा से स्नान किया जाता हुआ ध्यान करने से पूर्ण चंद्रमा के हृदय याला हो जाता है। चितं यंतु तर्ण मेवं विषाणि सर्वाणि नाश मुपटांति, क्षण मात्रादपिलोके भूतगगह शाकिनी दोषाः ।।९२॥ इसप्रकार ध्यान करने से लोक में सर्व विष भूतग्रह और शाकिनी के दोष क्षण मात्र में ही नष्ट हो जाते हैं। व हि म करौ गिरि राज मस्तक स्थौक्षणमिह चिंतय सुत्सुधां प्रयाहौ, रजनीकर समान पांडूरांगौ विषम फणीदं विषापहार दक्षौ ।। ९३॥ य और चंद्रबीज ठं को हिमालयपहाड़ के मस्तक पर उत्तम अमृत को बरसाते हुए चंद्रमा के समान अत्यंत श्वेत ध्यान करने से विषम सर्प का विष भी नष्ट हो जाता है। कोपं झं हंसः संवं हं हं हंस: झं हंसः इति च वं झं हंसः झं हं हंसो हंसः सो विनता सुत तोषितो मंत्रः, को पं यं झं हंसः वं हं शं हंसः शं हं हंसः ।। ९४ ॥ यह गरुड तोषित मंत्र है (विनता सुत अर्थात् गरुड) शून्यं शून्य शिर स्थं शून्य द्रय संद्यतुं शिरोहीनं, शून्य पदे विन्यस्तं सितवणं सर्व गरल हां |९५॥ QಥಗಣಪGS &Y೯/ Spಚದ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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