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CRescRCISCISDER विद्यानुशासन H50512505CCIEN क्षांक्षी खू खे मैं क्षों क्षौं क्ष क्ष:
सं जप्तैवारि भिमुखे से कात दष्टस्य, मानुषस्व स्थान्नि विषताक्षणाहे व
॥८५॥ यदि क्षा क्षीं ढूंदों मैं क्षों क्षौं क्ष क्षः मंत्र से जल को अभिमंत्रित करके इंसे हुए के मुख में पाणी डाले तो वह उसी क्षण विष रहित हो जाता है।
कूटस्थ स्वर युक्ता झ भ म य व स ह इमे पथक सप्तवर्णा
स्तथा प्रयुक्ताः वेडं निरिवलं निरस्यिंति ।। ८६ ।। कूट अक्षर(क्षकार) में स्थित स्वर सहित कमलबीज झ भ म य व सह यह सात वर्ण पृथक-पृथक प्रयोग किये जाने से संपूर्ण विष को नष्ट कर देता है|
ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय लिप स्वाहा इवीं क्ष्वी हंसः ।।
दष्टस्य वदने सिंचेज्जल मेतेणा मंत्रितं ततो, विषस्य सर्वस्य विष मोक्षः क्षणादभवेत्
||८७॥ इस मंत्र को पढ़कर इसे हुए के मुख्य में जल डालने से क्षण मात्र में ही सम्पूर्ण विष नष्ट हो जाताहै।
ॐ सुवर्ण रेखें कुर्कट विग्रह रूप धारिणी स्वाहा ।।
विद्या सुवर्ण रेखा मेतज्जप्तेन वारिणा दष्ट स्यांगे,
समा सेकः कृतः स्याद्विष वेग जित 11८८॥ इस सुवर्ण रेखा मंत्र से अभिमंत्रित जल से इसे हुये पुरुष के अंगो को भिगोने से विष का येग नष्ट हो जाता है।
वाम हस्ते स्वरश्चंद्र मंडलेन च वेष्टितं, ध्यायेत इवींकारममृतं श्रयतं ममत प्रभां
||८९॥
तेन हस्तेन सं स्पृष्टं भस्म वार्योषधादिकं, वितीण द्रागपा कुर्यात विषरोग ग्रहादिकान्
||९०॥
बायें हाथ में स्वर और चन्द्र मंडल से वेष्टित अमृत के समान ज्योति वाले इवीं बीज को अमृत बरसाते हुए ध्यान करे। उस हाथ से छूकर दी हुयी भस्मी जल या औषधि आदि विष रोग और ग्रह आदि को तुरन्त ही नष्ट कर देते हैं। 15052150352519051315/६४५ P15251975993595DEOS