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________________ 959595959विधानुशासन おやす み उत्तम सर्पों के अंक (अर्थात् आठ प्रकार के सर्प कुल) ९ के बीजों कं खं गं घं चों छों जीं झीं में वायु अक्षर (स्वा) (मारुत अक्षर) और गगन (अक्षर (हा) बीज लगाकर उस मंत्र से अभिमंत्रित जल की धारा से हृदय को धोने से इसा हुवा पुरुष उसी क्षण उठ जाता है । कं वं गं घं चों छीं जीं इवीं स्वाहा ॥ चचतुर्य कूट सांतानि प्रणवमुखानि बिन्दु युक्तानि, दीर्घ ल पर स्थितानि च मारुत गगना व सानानि चवर्ग का चौथा अक्षर झ और कूटाक्षर (स) और सात अक्षर में दीर्घ लपर लगाकर आदि में प्रणव (ॐ) और अंत में वायु (स्वा) तथा आकाश (हा) में क्ष्यां व्हां स्वाहा ॥ धत्येतानि अभिमंत्रित जल सिस्य देहिना, गरला न्युक्त ध्यानत्सकलं परोक्षमपि मंत्र बीजानि || 28 || इन बीजों से अभिमंत्रित जल से सर्प के काटे हुए शरीर को भिगोने से सब प्रकार से परोक्ष होते हुए भी सब विष को नष्ट कर देता है। सोद्धाधोर मकारे कूटं बिन्दुवान्वितै स्वरै युक्तः, वामं ज्योति जिंष्णाक योग रजोभि महामंत्र ॥ ८० ॥ अक्षर (व) में बिन्दु बीज लगावे ॐ इवां ॥ ८२ ॥ ऊपर और नीचे रेफ युक्त मकार विन्दु और स्वरों सहित कूटाक्षर (क्ष) और वाम अक्षर (ॐ) ज्योति (ई) जिष्णा (ऊ) के योग का रजो महामंत्र बनता है। वाम करे गुष्टाद्यं गुलि मध्य पर्व सु क्रमांदेवं, न्यस्यंत लेपिन्यस्यात् संस्यांत कला युतं व्योमां || 23 || बाँये हाथ की अंगुलियों के पोखों और जोड़ा और हथेली में उपरोक्त मंत्र को अंत की कल (अ:) तथा आकाश (ह) सहित लगावे । मंत्रेण तेन जसं वारि घृतं तेन वारि हस्तेन, दष्टस्य मुखे विकरेत्सहसैव सयातिच निद्विषतां ॥ ८४ ॥ इस मंत्र को हाथ में लेकर जपे और फिर हाथ के पानी को इसे हुए के मुख में पानी डाले तो वह तुरन्त ही विष रहित हो जाता है। 95959595959595 ६४४ 25957 あちこちとら
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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