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________________ 1 50503_fangencia 950595959595. फल - यह बहुत कष्ट उठाने पर थोड़ा फल देने वाला होता है। ६. यदि पंचाक्षर मंत्र हो किन्तु उसमें रेफ, मकार और अनुस्वार न हों तो उसे नेत्रहीन जानना चाहिये । फल- यह क्लेश उठाने पर भी सिद्धि दायक नहीं होता। ७. आदि, मध्य और अन्त में हंस ( सं ) प्रासाद तथा बाग बीज (ऐं) हों अथवा हंस और चन्द्रबिन्दु वा सकार, फकार अथवा (हुँ) हों तथा जिसमें मा, प्रा और नमामि पद हों वह मंत्र कीलित माना गया है । फल - x ८. इसीप्रकार मध्य में और अन्स में भी ये दोनों पवन को एक जिसमें पद और लकार न हो वह मंत्र स्तम्भित माना गया है। फल - जो सिद्धि में रूकावट डालने वाला है। ९. जिस मंत्र के अन्त में अग्निबीज (रं) वायु बीज (यं ) के साथ हो तथा जो सात अक्षरों से युक्त (स) दिखाई देता हो वह दग्ध संज्ञक मंत्र है। फल - X १०. जिसमें तीन, छ: या आठ अक्षरों के साथ अस्त्र (फट्) बीज दिखाई दे उस मंत्र को त्रस्त जानना चाहिये । फल - X ११. जिसके मुख भाग में प्रणच रहित हकार अथवा शक्ति हो वही मंत्र भीत कहा जाता है। फल - x १२. जिसके आदि, मध्य और अन्त में चार (म) हों वह मलिन माना जाता है। फल- वह अत्यन्त क्लेश से सिद्धिदायक होता है। १३. जिस मंत्र के मध्य भाग में 'द' अक्षर और अन्त में क्रोध बीज ( हुं हुं ) हो और साथ अस्त्र बीज (फट्) हो तो वह मंत्र तिरस्कृत कहा जाता है। फल - X १४. जिसके अन्त में म तथा य तथा हृदय हो और मध्य में वषट् ऐं वौषट् हो यह मंत्र भेदित कहा जाता है। फल- उसे त्याग देना चाहिये क्योंकि वह बड़े क्लेश से फल देने वाला होता है। १५. जो सीन अक्षर से युक्त तथा हंसहीन हो उस मंत्र में सुषुप्त कहा गया है। फल - x १६. जो विद्या अथवा मंत्र १७ अक्षरों से युक्त हो तथा जिसके आदि में पाँच बार फट् का प्रयोग हुआ हो तो उसे मदोन्मत माना गया है। फल - x 9695959595948P9596959519
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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