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________________ 25252525 विधानुशासन स विष कले भवति गले तत्रामृत वर्णममृत सम वर्ण, अशितुं ध्यात्वा दद्यात्त अन्नंनो चंदऽजीर्ण स्यात् ॥ ३१ ॥ यदि गले में विष की कला हो तो यहाँ पर अमृत के वर्ण के समान ध्यान करके खाने के लिये अन्न देवे अन्यथा अजीर्ण हो जावेगा। ध्यात्वे वै तन् नित्यं भुंजानो भोजनं भवेन्मनुजः, . आरोग्येनवलेन च दीप्त्या पुष्टया च संपन्नः ॥ ३२ ॥ • यदि कोई पुरुष यह ध्यान करके नित्य भोजन करे तो यह सदा ही आरोग्य बल कांति और पुष्टी से हो । 'युक्त 9956959 मंत्र ध्यानादिना प्राप्यं सर्वे : सर्वत्र सर्वथा, इत्युपयोग विषघ्नोऽयंश्लाप्यते विश्व गोचर: ॥ ३३ ॥ और मंत्र के ध्यान के दिन इस उपयोग को सबको सब कही सभी प्रकार से करना चाहिये यह उपयोग संसार भर में विष को नष्ट करके प्रशंसित हो रहा है। परमश्च विविक्त विदुना सहितौ पृथक्, बीजं तुषारमह सौ द्वितीयं वद्ध शब्देया हं वं मंसं तं ॥ ३४ ॥ दष्ट हत्पदम कोशेषु मंत्र तन्नाम वेष्टितं, चंद्रां शतं स्मरे देष दष्टं रक्षती मृत्युतां ॥ ३५ ॥ परम (र) और विविक्त (भ) को बिन्दु सहित पृथक-पृथक लेकर तुषार (चंद्र बीज) और महस (अभि बीज बीजों को बंधे हुए दोनो शब्दों से मिलावे। सांप से काटे हुए पुरूष के हृदय कमल में उसके नाम को मंत्र से वेष्टित करके उस डंसे हुए के नाम के ऊपर एक सौ बार चंद्रमा का ध्यान करे, तो उसकी 'मृत्यु से रक्षा हो सकती है ॥ मंत्रोद्धारः कवेर्मध्ये ककारारद्यांश्चत्वारश्चतुरः क्रमात् विन्यस्टो द्वामतो वर्णान परमाख्या क्षरावलीन इत्थं वर्ण चतुष्कैस्तैरष्टभिः कवि मध्यगैः पिंड़ा, स्युरष्टौ कुलिक पदेन कृत वंष्टनै: 959595959 ६३४ 9595959519 ॥ ३६ ॥ || 3160 || •
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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