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________________ ಇದಾವಣಗಣದE RIಿಘEQF Bಥಳಥಥಳಗಾದಳದ तानष्ट पिंडाना रम्य पदमटामा जानुतः कमात्, आनाभि नाभेरा कंठ कंठादा मस्तकं कमात् ॥ ३८॥ वाम पार्थदिकं न्यस्य स्चेतन मध्य स्थितं स्मरेत्, दष्टयैनं मंत्रिणां जागा ग्रहाश्च विभियुः परं ॥३९॥ कधि (ऋ) के मध्य में ककार आदि चार बीजों को क्रम से रखे। उत्तमोत्तम नाम वाले अक्षरों की पंक्ति को वर्णों के बाईं तरफ रखे। इसप्रकार धारों वर्गों के बाहर आठ पिंड़ों को कवि के मध्य में के बीजों से जो आठ कुलिक पदों से घिरे हुए हैं। पिंड बनता है। उन आठों कुलिक पदों के पिंडों से वेष्टन करके, उन आठ पिंडो से पैर से घुटनों तक और नाभि से क्रमशः कंठ तक, और कंठ से क्रमपूर्वक मस्तक तक, बायें अंगो की तरफ रखाकर अपने को उसके बीत में खड़ा हुआ ध्यान करे। इस मंत्री से इरकर नाग और सब ग्रह भाग जाते हैं। गरूड़ हस्त विधान क्षिप स्याहा बीजानि न्यसेत्पाद नाभि हन्मुख शीर्षषु. पीतसित कांचनासित सरचाप निभानि परिणायः ॥ ४०॥ क्षिप ॐ स्थाहा इन पांचो बीजों को क्रम से निम्न प्रकार से अपने अंगो में स्थापित करे। क्षि बीज को पीले रंग का दोनों पैरों में, प बीज को सफेद रंग का वाभि में, ॐ बीज को कांचन वर्ण का हृदय में, स्वा बीज को काले रंग का मुख में, हा बीज को इन्द्र धनुष के वर्ण का सिर में स्थापित करे। भूजला जल मरूनभोक्षरं पाद नाभि हृदयास्य मस्तके, न्यस्य मंत्र्यऽभिहित द्युतिःक्रमात् पक्षिराजमनु चिंतरोन् निजं ॥४१॥ पृथ्वी जल(प), अनल (अग्मिों ), मरून (वायु स्या), नभ (आकाश हा) अक्षरों को अपने पैर, नाभि, हृदय, मुख और सिर से स्थापित कर मंत्री अपने को पक्षीराज (गरूड) से प्राप्त किये हुए महान तेज युक्त ध्यान करे । आजानुतः सुवर्ण छवि:मा नाभः सुधी: प्रभा धवल, आकंठा द्रक्तद्युतिमा के शांतात्तमो वर्णा ॥४२॥ पांव से धुटनों तक सोने के समान पीले रंग का, घुटनो से नाभि तक सफेद कांति का, नाभि से कंठ तक लाल रंग का औरकंठ से केशों के अंत तक तम (अंधकार) के समान काले रंग का आरक्ताक्षं निरिवलं त्रैलोक्य व्यापिनं गरून्मतं आनील, नाशिकाग्र भूषितामुरगाधिपै यायेत् ॥४३॥ SSCISCTRICISTRICISTR5६३५ PISTOISTRISSISTRIECTECISI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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