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________________ SHRIRIDICTIOTRIOTSITE विद्यानुशासन VSDIDIOISRASISADICASS दशम समुदेशः अधः परं प्रवक्ष्यामि निर्विषी करणं पर, टोन प्राणास्त्रायंते प्रणिनां विषवेगतः ॥१॥ अब उत्तम निर्विषीकरण का वर्णन किया जाएगा जिसके द्वारा विष के वेग से प्राणियो के जीवन की रक्षा की जाती है। निर्विषीकरणं कार्य संग्रहे सति मंत्रिणाः ततः, स्तोभादिकर्माणि योजनी याति यत्न तः । ॥२॥ मंत्री को संग्रह के पश्चात निर्विषीकरण करना चाहिये और उसी समय स्तोभ आदि कर्मों को भी प्रयत्न से करे। सद्यः चिकित्सितान्टाथा सकलीकरणं च तार्क्ष्य हसाव विन लामो शालि स्नो स्तंभ स्तथा वेशः ॥३॥ इसमें तुरन्त चिकित्सा सकलीकरण, तार्क्ष्य, हस्त, विषनाश, स्तोभ, स्तंभ और नागवेशन का वर्णन किया जाएगा। संक्रामो भुजंगा हानं स्वहि करहि विषादनं, पर विद्या छिदायंत्रं रक्षा चानोपदिश्यते ||४|| विष संक्रमण, सर्प को बुलाना, सर्प को हाथ में लेना, सर्प विष को भक्षण करना और दुसरे की विद्या को नष्ट करना इनके यंत्र और रक्षा का वर्णन किया जाएगा। दशं स्योपरि सहसा बंधश्च तुरंगुले प्रयुजति, नरव कंटकादिभि द्राक् कुर्यात् दंशात सक श्रावं ॥५॥ जिस स्थान पर सर्प ने काट लिया हो उसके चार उंगल ऊपर एक बंद लगाकर काटे हुये स्थान से तुरन्त ही नाखून या कांटे आदि से खून निकाल देवें। दंतोप्राणादक्षणे जियिां दंश देशमाद तेन हिं, पत मलेन ततो नाति कामेद्विषं दंशं । ॥६॥ इसके दांत, नाक, आँख और जीभ के स्थानों में सर्प का विष नहीं फैल सकेगा। SAMRIDDISORTOISODRIS[६२९ P15215050STRISTRISTRIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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