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STSOSIDEOSRIDE विधानुUM TEADIRTISIO555I0RSS प्रकार स्वर (तत्व) के विभाग को जानता है वही लोक में गारुड़ होता है।
ॐकार पूर्व प्रविलिरव्य तत्वं लाहःपः लक्ष्मी सित होमवर्ण, मार्तंड संख्यं प्रजपेत्सहस्त्रं
मंत्री भवेत् त्याग परिग्रहज्ञः ॐ ह्रीं ला व्ह: पः लक्ष्मी हंसः स्वाहा ||
॥१३५।।
प्रत्यक्ष संग्रहः जो मंत्री ॐ ह्रीं ला व्ह: पः लक्ष्मी हंसः स्वाहा इस मंत्र का बारह हजार जप करता है वही त्याग परिग्रह का ज्ञानी होता है।
दष्टो दिनो यदि न पश्यसि बद्ध दृष्टि मूच्छा प्रयाति न च जल्पति कंपते च, मंत्राभिषेक करणेन न निर्विषांगः श्वासाधिको भवति चेद मराकरः स्यात्
॥१३६॥ यदि सर्प का काटा हुआ प्राणी निगाह बांधकर दिन नहीं देख सके, मूर्छित हो जाये उसकी बोली नहीं निकले, कांपने लगे और यह उपरोक्त मंत्र के अभिमंत्रित जल के स्नान से विषरहित नहीं होकर अधिक श्वास ही लेने लगे, तो वह नहीं बचेगा।
एक द्वित्रि चतुर्धायाम्यै रवि सोमकुज बुधाश्चा स्यात्,
द्वि चतु षट दिवसे रवि गुरु शुक्र शनीश्चरायांति ॥१३७ ॥ इससे सूर्य के ग्रह की दशा एक पहर में चंद्रमा की दोपहर में, मंगल की तीन पहर में बुध की चार पहर में बृहस्पति की दो दिन में, शुक्र की चार दिन में और शनि की छ दिन में समाप्त हो जाती है।
त्याग ग्रहै स्वेड. विनाशनार्थः ज्ञेयानि सारणी सुगुरुड़ स्य स्तोभानि, कर्माणि य कौतुकांर्थ शUषया । तानि गुरौः सकाशात्
॥१३८।। त्याग, ग्रह और विष को नष्ट करने कौतुक और विष को स्तोभन करने को लिये गुरु से गारुड़ी विद्या के सार को जाने।
इति नवम परिच्छेदः
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