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________________ CHEIOSCHECISIONSIDE विधानुशासन VSRISTICISIO505125 हां वंक्षं मंत्र संचित तोरोना त्रसति यस्या गात्रेतु सच जीवत्यथवा क्षि स्पंदन तो नान्यथा दष्टः ॥१२९॥ यदि हां वंक्षं मंत्र से मंत्रित जल से मुख सींचा जाने से जिसके शरीर में कष्ट होतो वह बच जायेगा अयवा आँख फड़कने लगे तो बचेगा अन्यथा नहीं बचेगा। स्थभंन बीजं लांतं बिंदु युतं सृष्टि युक्त कष वर्णः तन्मंत्र पुलिकितांगो जीवति यदि पल्मन्सं चलनो ॥१३० ।। स्थंभन बीज और व को बिंदु सहित कष से मंत्रित जल से जिसके शरीर में रोमांच हो जावे और पलके चलने लगे तो यह बच जाएगा। ॐहां वं क्षवः स्वाहा सप्तासरभि मंत्रित दृष्टि दृष्टो रवि शशांकंगु यदि पश्यति सनपश्यति कृतांत मिति गारु गतातं ॥ १३१॥ यदिॐ ह्रां यं क्षयः स्याहा इन सात अक्षर के यंत्र से मंत्र से आंखे मंत्रित करने पर सूर्य और चन्द्रमा को देखने लगे तो यह काल को नहीं देखता ऐसा गारुड शास्त्र में कहा है। अनल कुवलय नमो जिन मंत्रं ध्यायनथ क्रमान्मंत्री वामे तिरो.उभद्याक्षि स्फुरणात् शुभम शुभ विष मादिशतु ॥१३२॥ ॐ अनल कुवलय नमो जिन स्वाहा इस मंत्र का ध्यान करते हुए यदि मंत्री की बॉई आँख फड़के तो शुभ, दाहिनी से अशुभ और दोनों से विष दूर होता है। तन्मंत्रा मनु स्मरणां स्फुरणं यत्रास्ति तत्र दंशो द्वेगः, अंग स्फुरणा भायेज्ञातव्यः स्याद् विषा भावः ॥१३३ ।। यदि मंत्र को स्मरण करने पर मंत्री का अंग फड़कने लगे, जो अंग फड़के बही विष का जोर होता है- यदि अंग नही फड़के तो विष का अभाव होना चाहिये। ॐ अनल कुयलय नमो जिन स्वाहा। • तत्वे समिते काल स्तत्वे सतिनैव विद्यते कालः, इति तत्व विभागज्ञः स एव विनता सुतो लोको ।।१३४॥ स्वर (तत्य) के न रहने पर काल तथा स्वर (तत्व) के रहने पर काल नहीं होता है, जो पुरुष इस CSCISIOTSICSIRIDIOS25६२७PSRISTRISTOISONSTRISTRIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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