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S5I01512150151065105 विधानुशासन 352150151015015IN नाक को नहीं देखे वह पांच दिन जीता है, जिसको नेत्रों की कांति नहीं दिखलाई नहीं दे वह सात दिन और जीता है तथा जिसको अपनी भौहें दिखलाई देवे वह नौ दिन ही और जीता है।
संग्रह तथा त्याग के मंत्र बिंदुना परम स्तेन यदबुंकत मंत्रणं तत्से, कानेत्र सुन्मीतेद्यदि दष्टः स जीवति
॥१२४॥ यदि सर्प से काटा हुआ प्राणी परम (र) में बिंदु अर्थात् रं से मंत्रित जल से सींचा जाने पर अपनी आंखें खोल दे तो वह बच जाता है।
स्वरैः षोडशभिजप्तः वापतो यस्यगच्छति, वितीर्ण मास्टो तस्य स्था जीवितं मतिरन्टाथा
॥१२५॥ यदि सोलह स्वरों से जपे हुए जल के मुँह में जाने से मुँह खुल जाये तो यह बच चाता है अन्यया मर जाता है।
शून्टोन सर्व स्वर संयुतेन जलं प्रदधादभि मंत्र्य पानं, तस्य स्थितत्वसति सःस्थितः स्यात् निर्गमे निर्गत एव जीव:
॥१२६॥ यदि हकार में मिलाये हुए सब सोलह स्वरों से अभिमंत्रित जल को पीने से खड़ा रह सके तो उसका जीवन रहेगा अन्यथा यदि वह खड़ा न रह सके तो उसका जीवन भी नहीं रह सकेगा।
ॐ वंक्षः इत्टोनेनाभि मंत्रि तै वारिभिर्मुरवे सं सिक्तो, दष्टस्य स्पंदः स्याचे जीवेदितरथे तिरथा
॥१२७॥ ॐ यक्षः मंत्र से जपे हुए जल से, मुख भिगोने से, मुख में जल बहने लगे तो जीयेगा अन्यया मर जावेगा।
महि जल समीरिणांबर मंत्रित सलिलेन सिक्त वदनोयः, प्रकट यति श्वासम सौ जवति खलुने तिरो द्रष्ट:
॥१२८॥ यदि क्षिप स्वाहा मंत्र से मंत्रित जल से सींचा जाने पर जिसके शरीर में श्वास प्रकट होतो वह बच जाएगा अन्यथा नहीं बचेगा।
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