SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ CISORRISTORICTARTE विद्यानुशासन 9501501510551015015 १८. ब्राह्मण और क्षत्रियों के योग्य मंत्र - (मंत्र. सा. सा. वि.) सुदर्शन मंत्र, पाशुपत मंत्र, आग्नेयास्त्र, और नृसिंह मंत्र, को ब्राह्मण और क्षत्रिय को ही देना चाहिये अन्य को नहीं। १९. चारों वर्गों के योग्य मंत्र ( मंत्र. सा. सा. वि.) छिन्नमस्ता, मातंगी, त्रिपुरा, कालिका, शिव, लघु, श्यामा, कालरात्रि, गोपाल, राम, उग्रतारा , और भैरव के मंत्र चारों वर्गों को देने चाहिये। यह मंत्र स्त्रियों को विशेष रूप से सरलता से सिद्ध होते हैं। इसकी अधिकारी चारों वर्गों की स्त्रियाँ ही होती हैं। २०. वर्णक्रम से बीजों के अधिकारी-(मंत्र-सा.सा.वि.)ह्रीं-क्लीं श्री और ऐं बीज ब्राह्मण को देवें । क्ली, श्रीं और ऐं क्षत्रिय को देखें। श्रीं और ऐं वैश्य को देवें। तथा 'ऐं' शुद्र को देवें। अन्यों को फट् बीज देवें। २१. मंत्रों के जप में गूंथने के भेद - मंत्रों को जपने से निम्नलिखित तेरह प्रकार हैं। जिनको विन्यास कहते हैं- ग्रंथित, सम्पुट, ग्रस्त, समस्तयायोग, विदर्भित, आक्रान्त, आयन्त, अगर्भित या गर्भस्थ, सर्वतो मुख, विदर्भ, विदर्भ ग्रसित, रोधन और पाभव। साध्य के नाम के एक एक अक्षर के साथ मंत्र के एक एक अक्षर कोएक बार प्रयोग करने को ग्रथित कहते हैं। यह वश्य और आकर्षण कर्मों में फल दायक होता है। जिसमें आदि और अन्य में आधा-आधा मंत्र और बीच में साध्य का नाम हो ग्रस्त कहते हैं। इसकी मारणादि सभी अशुभ कर्मों में प्रयोग किया जाता है। जिसमें पहले नाम और फिर मंत्र बोला जावे उसे समस्तयायोग कहते हैं। यह उच्चाटन में प्रयोग किया जाता है। जिसमें मंत्र के दो-दो अक्षर और एक-एक साध्य के नाम कर अक्षर आवे उसे विदर्भित कहते हैं। यह वशीकरण करता है। यदि साध्य का नाम चारों ओर मंत्र के अक्षरों से घिरा हुआ हो तो उसे आक्रान्त कहते हैं। यह सब कार्यों की सिद्धि, स्तम्भन, आवेशन, वश्य और उच्चाटन कर्मों को करता है। . जिसमें आदि में एक बार पूरा मंत्र, मध्य में साध्य का नाम और अन्त में फिर पूरा मन्त्र लगाया जावे उसे आधन्त कहते हैं, यह विद्वेषण करता है। आदि और अन्त में दो-दो बार मंत्र का प्रयोग करके बीच में एक बार साध्य का नाम रखने को गर्भस्थ या गर्भित कहते हैं। यह मारण, उच्चाटन, वश्य, नदी स्तम्भन, नौका भंजन और गर्भ स्तष्थन में प्रयोग किया जाता है। • जिसमें आदि और अंत में तीन-तीन बार मंत्र जपा जावे और नाम-बीच में एक ही बार उसे सर्वतोमुख कहते हैं। CTERISTRISIONSID5128500 ५७ P5950150SRIDDISODSI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy