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CRICATIOTERATORREE विधानुशासन 95015ICISIOISO905 कोष्ठक में ऋणी-धनी इस रीति से देखा जा सकता है कि दोनों पुरूषों के वर्ग की संख्या को पृथक्पृथक् दो-दो से गुणा करके इसकी वर्ग संख्या उसमें और उसका इसमें जोड़ दें।तथा दोनों को आठ का भागदें।जिसका अंक शेष में अधिक हो तो वह ऋणी जिसका न्यून हो वह धनी । अर्थात् अधिक अंक वाला न्यून अंक वाले को धन देगा। जैसे सेठ भगवान दास के पास नन्दकशिोर नौकरी चाहता है तो उसको मिलेगी या नहीं। अब देखो भयवान दास की संख्या छै है और नन्दकिशोर की पाँच है।दोनों को दो से गुणा किया तो ६x२% १२ और ५४२= १०।अब इसमें एक दूसरे की वर्ग संख्या जोड़ दो और आठ का भाग दो।१२+५= १७/८-१ शेष।१०+६- १६/२-० यहाँ पर शून्य के शेष से भगवान दाम का शेष १ अधिक है। अतएव भगवान दाम नन्दकिशोर को नौकर रख लेगा।'
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मंख्या । वर्ग का वर्ग के अक्षर | शत्रु | मित्र | उदासीन
स्वी गरूण | अाए । सर्या श्वाम
सिंह बिलाब । कखगघा | पूषक मर्य
कल सिंह । बछ जाम । मृग - मूषक
सर्व प्रदान | ठरण | मेव मृग । मूषक सर्प नाथदधन | गहा मेष
मृग मुधक पफमबिलावा गमा | मग यरलव सिंह | बिलाव
| बिलावा गह | मेष |शवसह स्कान | सिह , बिलाब
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१६. कलियुग के सिद्धिप्रद मंत्र - (मत्र. सा. सा. वि. )
एकाक्षर के मंत्र, दो व तीन अक्षर वाले मंत्र, अनुष्टुप छन्द के मंत्र, तीन प्रकार के नृसिंह मंत्र, एकाक्षर अर्जुन मंत्र, दो प्रकार के हयग्रीव मंत्र, चिन्ता-मणि मंत्र, क्षेत्रपाल मंत्र, यक्षाधिपति भैरव के मंत्र, गोपाल मंत्र, गणेश मंत्र, चेटका मंत्र, यक्षिणी मंत्र, मातंगी मंत्र,सुन्दरी मंत्र, श्यामा मंत्र, तारा मंत्र, कर्ण पिशाची मंत्र, शबरी मंत्र, एकजटा मंत्र, यामा मंत्र, काली मंत्र, नील सरस्वती मंत्र, त्रिपुरा मंत्र और काल रात्रि मंत्र कलियुग में सिद्ध होते हैं। १७. मंत्र के अधिकारी द्विजवर्णी के योग्यमंत्र - ( मंत्र. सा. सा. वि.) अघोर मंत्र, दक्षिणामूर्ति मंत्र, उमा मंत्र, माहेश्वर मंत्र, हयग्रीव मंत्र, वाराह मंत्र, लक्ष्मी मंत्र, नारायण मंत्र, प्रणव से आरम्भहोने वाले मंत्र, चार अक्षरों के मंत्र, अग्निके मंत्र, सूर्य के मंत्र, प्रणव से आरम्भ होने वाला गणेश मंत्र, हरिद्रा गणेश षडाक्षर राम मंत्र को और वैदिक मंत्रों को ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों को ही देने चाहिये। निंद्य कार्य वालों को नहीं।
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