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esP5PSPSS विधानुशासन
मंत्रादिषु सर्वेषु लेखा काम बीजकं श्री बीजं चापि निक्षितंजपे मंत्र विशुद्धये
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॥९॥
सब मंत्रो के आदि में हृ लेखा अर्थात् ह्रीं काम बीज क्लां और श्री बीज को लगा कर मंत्र की शुद्धि के लिए जप करे ।
भार संपुटितो वाथ दुष्ट मंत्रोऽपि सिद्धयति यस्य यस्मिन् भवेद् भक्तिः सोपि मंत्रोषि सिद्धयति
॥ १०१ ॥
भार नाम के
मंत्राक्षर से संपुट किया जाने से दुष्ट मंत्र भी सिद्ध हो जाता है, और जिसकी जिसमें भक्ति होती वह मंत्र भी सिद्ध हो जाता है।
१३. गृहीत शत्रु मंत्र को त्याग करने की विधि मंत्र, सा. सा. वि. )
यदि भूल से शत्रु मंत्र का अनुष्ठान आरम्भ कर दिया हो तो उसके त्याग करने की विधि भी है। किसी भी उत्तम दिन में सर्वतोभद्र मण्डल (दे. ज्वालामालिनी भाषा टीका) में कलश की स्थापना करके मंत्र को उल्टा बोलते हुए कलश को जल से भरें। उस पर वस्त्र ढ़ककर उसमें देवता का आह्वानन करें। फिर उसके सामने अग्निकुण्ड बनाकर उसमें अग्नि की प्रतिष्ठा करके ग्रहण किये हुए मूल 'मंत्र को उल्टा करके घी की दो आहुतियां देवें। फिर खीर और घी की दिक्पालों को बलि देवें। इसके पश्चात् देवों के देव भगवान ऋषभदेव से निम्नलिखित शब्दों से प्रार्थना करें 'हे भगवान्! मुझ चंचल बुद्धिवाले ने मंत्र की अनुकूलता बिना विचार किये ही जो इस मंत्र को ग्रहण करके इसका पूजन किया है, इससे मेरे मन में क्षोभ हो रहा है। हे भगवान्! आप कृपा करके मेरे मन के क्षोभ को दूर कीजिये। और मेरा उत्तम कल्याण करके मुझे अपनी निर्मल भक्ति दीजिये।' इसप्रकार प्रार्थना करके उस मंत्र को ताड़पत्र कपूर- अगर और चन्दन से उल्टा लिखकर पहले उसका पूजन करें और फिर उसको अपने सिर से बाँधकर उस घड़े के जल से स्नान करें। उस कलश में फिर जल से भर कर उसके मुख में उस पत्र को डाल दें। फिर उस घड़े का पूजन करके उसको किसी नदी या तालाब में डालकर श्रावक भोजन करावे। इस प्रकार उस मंत्र के कष्ट से छूट जाता है ।
१४. दुष्ट मंत्र को जपने की विधि (मंत्र. सा. सा. वि.)
यदि मंत्र उपरोक्त प्रकार से अनेक बार शोधन किया जाने पर भी शुद्ध न हो तो उसके दोष दूर करने के वास्ते उसकी आदि में 'ह्रीं क्लीं' श्री, बीजों को लगाकर जपें। अथवा 'ॐ' के सम्पुट में जपा जाने से दुष्ट मंत्र भी सिद्ध जाता है ।
१५. पुरूष का ऋणी धनी विचार ( मंत्र. सी. सा. वि.)
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किसी पुरुष या स्त्री से कोई कार्य लेने के लिये मंत्र जपना हो तो निम्नलिखित उपाय से विचार करें कि काम देने वाला व्यक्ति साधक का ऋणी है या नहीं। यदि साधक का ऋणी होगा तो कार्य निश्चय रूप से पूर्ण होगा। नीचे लिखे कोष्ठक में वर्णों और उनकी शत्रु मित्रता का ज्ञान हो जावेगा । । इस 959595959595ON 44 PMPSPA
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