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CSIRDOSTORICICI विधानुशासन DRISTOTSCIEDEOS
सौरि मत्राशेयोरि स्युजिन मंत्रा स्तथैव च
सिद्ध साध्य सुसिद्धार विचार परिवर्जिता जो सौरि मंत्र है और जो जिनमंत्र है उनमें सिद्ध साध्य और सुसिद्ध व शत्रु के विचार की कोई आवश्यकता नहीं है।
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आम्नाय गत मंत्राणां प्रसादं प्रणव स्य च स पिंडाक्षर मंत्राणां सिद्धारिनैव शोधयेत्
॥३॥ आम्नाय के अनुसार मंत्री प्रसाद नामक प्रणव के जो सपिंड अदार वाले मंत्र है उनमें ऐसा विचार नहीं करे कि यह सिद्ध मंत्र है और यह अरिमंत्र है।
एकाक्षरस्ट मंत्रस्य मूलमंत्रस्य भो मुने सैद्धांतिकस्य मंत्रस्य सिद्धारिनैव शोधोत्
॥४॥ हे मुनि एकाक्षरक्ष मूल मंत्र और सैद्धांतिक मंत्र में सिद्ध और शत्रु का विचार नहीं करे।
स्वप्न दत्तस्य मंत्रस्य स्त्रिया दत्तस्य चैवहि
नपुंसक स्टा मंत्रस्ट सिद्धारं नैव शोधयेत् स्वप्न में दिये हुवे स्त्रिय से दिये हुवे और नपुंसक मंत्रो में सिद्ध और शत्रु को न विचारे।
हंसस्याष्टक्षरस्यापि तथा पंचाक्षरस्य च एकदि शादि बीजस्य सिद्धारिं नैव शोधटोत्
॥६॥ हंस के अष्टाक्षर मंत्र है तथा पंचाक्षर मंत्र तथा एक दो और तीन आदि बीजों के मंत्रों में सिद्ध और शत्रु नहीं विचारे।
अकारादि क्षकारांतैः बिंदुवन्मात्रकाक्षरैः अनुलोम विलोमस्थैलप्तया वर्णमालया
॥७॥ अकार से लगाकर क्षकार तक के अनुस्वार सहित मातृका अक्षरों से चाहे वह सीधे क्रम से हो चाहे उलटे क्रम से हो अथवा वर्णमाला से पृथक हो।
प्रत्येक वर्णयुग्मंत्रा जप्ताः स्युः क्षिप्रसिद्धिदाः वेरि मंत्राश्च ते नृणां मन्ये मंत्राश्च किं पुनः
॥८॥ प्रत्येक वर्ण को साथ लगाकर जप करने से शीघ्र ही सिद्धि होती है। उसके अतिरिक्त अन्य मंत्र मनुष्यों के शत्रु है। SSCISEDICISIOTISIOTSICAL ५४ PISOISIOISTSISTERSTOOTER